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[जैन विद्या और विज्ञान
को चतुर्थ आयाम माना, उसकी तुलना में चेतना का चतुर्थ आयाम प्रस्तुत किया गया। इस दृष्टि से उन्होंने पहले तो घन को ही चार आयामों में प्रदर्शित करने का प्रयास किया किंतु उसे सफलता नहीं मिली। उन्होंने एक ग्लोब (Globe) अर्थात् पृथ्वी की भांति गोल आकार का त्रिआयामी चित्र बनाया फिर कल्पना के आधार से ग्लोब की परिधि पर किसी शीर्षवत बिंदु से चौथे आयाम को उभारा। उन्हें प्रतीत हुआ कि यह आयाम जानवर के सींगों (Horms) की तरह ऊपर उठ रहा है जो आगे जाकर सींगों के किनारे मिलने से वृत्त-रूप बन गया है। उन्होंने सोचा कि ऐसा क्रम जब ग्लोब की परिधि पर सभी शीर्षवृत्त बिंदुओं से उठेगा तो एक पूरे बड़े वृत्त का रूप धारण करेगा। इस मॉडल को अच्छी तरह समझाते हुए उन्होंने चित्र को प्रेषित किया। यह चित्र ऐसा प्रतीत होता है मानो संख्या आठ (8) को चारों ओर घेर कर एक नए वृत्त से बना हो। इस प्रकार चित्र में तीन वृत्त दिखाई देते हैं। नीचे वाला वास्तविक ग्लोब दर्शाता है जो तीन आयामों का प्रतिनिधित्व करता है, संख्या आठ (8) के चित्र में उपर वाला वृत्त खाली जगह को दर्शाता है जो वास्तविक नहीं है और बड़ा वाला वृत्त जिसने संख्या आठ (8) के चित्र को पूर्णरूप से घेर रखा है वह चौथे आयाम को प्रदर्शित करता है।
यह प्रयास सर्वथा नया है, जो लोक - ब्रह्माण्ड के चौथे आयाम की ओर संकेत करता है। जैन दृष्टि से भी कुछ उदाहरण ऐसे हैं जो चौथे आयाम की ओर संकेत करते हैं, उनमें से एक अनाहारक अवस्था का है जिसमें जीव को गति करने में चार समय लगते हैं। (ii) केवली समुद्घात |
केवली समुद्घात को समझने के लिए भी चार आयामों की आवश्यकता है क्योंकि वहां भी चार समय में जीव, लोक में व्याप्त होता है और अगले चार समय में पुनः सिकुड कर मूल शरीर में आ जाता है। इन कुल आठ समयों (काल) में 3. 4. 5वां समय अनाहारक बताया है। इसकी विवेचना आवश्यक है। चौथे और पांचवें समय में जब आत्मा लोक-व्यापी रहती है वहां अनाहारक अवस्था का होना न्यायोचित है लेकिन तीसरे समय में अनाहारक होना तर्क-संगत नहीं लगता । जैन आगमों में ऐसे प्रकरण जो दुर्लभ अवसर हैं, वहाँ आकाश-काल के भौतिक नियम लागू नहीं होते।