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आगम और विज्ञान ]
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मानसिक संप्रेषण का सिद्धान्त
जैन आगम भगवती में मानसिक संप्रेषण का सिद्धान्त प्रतिपादित हुआ है। आचार्य महाप्रज्ञ ने मानसिक प्रश्न और मानसिक उत्तर को अतीन्द्रिय ज्ञान की विशेष प्रक्रिया बताया है। वे कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति मानसिक स्तर पर प्रश्न पूछ सकता है और कोई भी व्यक्ति मानसिक स्तर पर उत्तर दे सकता है। इसमें कोई विशिष्ट बात नहीं। मन के स्तर पर पूछे गए प्रश्न को जान लेना और मन के स्तर पर दिए गए उत्तर को समझ लेना, वह विशिष्ट बात है । जो व्यक्ति सूक्ष्म जगत से सम्पर्क स्थापित करने की साधना कर लेता है वह अतीत के किसी महापुरुष से सम्पर्क स्थापित कर सकता है वे महापुरुष चाहे महावीर हो, कुन्दकुन्द हो या अन्य कोई हो । आचार्य महाप्रज्ञ अपने स्वयं पर किए प्रयोगों के आधार से लिखते हैं कि 'मैं ध्यान - कोष्ठ में प्रवेश पा रहा था । स्थूल जगत से मेरा संबंध विच्छेद हो चुका था । मेरा ध्येय था महावीर की साधना का साक्षात्कार । सूक्ष्म जगत से सम्पर्क साधकर मैं आचार्य कुन्दकुन्द की सन्निधि में पहुंचा। मैंने अपनी जिज्ञासा रखी और मुझे उत्तर मिले। इसके बाद में अन्तःकरण में लौट आया। ये जागृत चेतना
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के परिणाम हैं।'
अनुत्तर विमान जो ऊर्ध्व लोक में है उन देवों के मन कोई प्रश्न उपस्थित होता है तो वहां बैठे-बैठे मनुष्य-लोक में विद्यमानं केवली के साथ मानसिक आलाप संलाप करते हैं । केवली उनके प्रश्न को जानकर मानसिक स्तर पर उसका उत्तर देते हैं । वे प्रश्नकर्ता देव, केवली की मनोद्रव्य-वर्गणा के आधार पर उसे जान लेते हैं । केवली के ज्ञानात्मक भावमन नहीं होता किंतु योगरूप मानसिक प्रवृत्ति होती है । केवली कुछ कहना चाहते हैं तब उनके आत्म-प्रदेशों का स्पन्दन होता है। उससे मनोद्रव्य -वर्गणा ( मानसिक पुद्गल-स्कन्धों) का ग्रहण होता है। उन पुद्गलों को अनुत्तर विमान के देव ग्रहण कर जान लेते हैं । वृत्तिकार के अनुसार उनके अवधिज्ञान का विषयक्षेत्र लोक नाड़ी है। जिसका विषय क्षेत्र लोक का संख्येय भाग होता है, वह भी मनोद्रव्य - वर्गणा को जान लेता है तो जिसका विषय क्षेत्र लोक नाड़ी हैं, वह मनोद्रव्य - वर्गणा को कैसे नहीं जानेगा?