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• आगम और विज्ञान ]
आलू क्या अनन्त जीवी है?
जैन समाज में यह प्रचलित धारणा है कि आलू अनन्त जीवी हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने इस सम्बन्ध में जो विवेचन किया है वह साधारण पाठकों के लिए अत्यन्त रुचिकर रहेगा अतः यहां प्रस्तुत किया गया है।
बादर (स्थूल) वनस्पति के दो प्रकार हैं
1. प्रत्येक शरीरवाली
2. साधारण शरीरवाली ।
जिसके एक शरीर में एक जीव होता वह वनस्पति 'प्रत्येक शरीर • वाली' कहलाती है। जिसके एक शरीर में अनन्त जीव होते हैं वह वनस्पति 'साधारण शरीर वाली' कहलाती है। अनन्त जीव वाली वनस्पति का वर्णन भगवई, पण्णवणा, जीवाजीवाभिगमे और उत्तरज्झयणाणि
इन चार आगमों
में मिलता है।
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पण्णवणा सूत्र में आया आलुए (आलुकम्) शब्द विमर्शनीय है। इसका वास्तविक अर्थ 'आलुक' या 'आलु' है, लेकिन यह आलुक, आलू (Potato) नहीं है। क्योंकि
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1. आलू (Potato) नामक पौधा भारतीय नहीं है; इसे भारत में पूर्तगाली लोग लाए । मूलतः इसे दक्षिणी अमरीका से यूरोप ले गए थे। इसकी मूल उत्पत्ति चिली (द. अमरीका) है। इस स्थिति से इसका संबंध प्रस्तुत सूत्र के 'आलुए' के साथ नहीं जोड़ा जा सकता ।
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2. आप्टेकृत संस्कृत अंग्रेजी कोष के अनुसार 'आलु esculent root (not applied to potato etc.)' अर्थात् एक ऐसा खाद्य मूल (जो आलू ( Potato) का द्योतक नहीं है) ।
3. निघण्टुआदर्श, पू. 164, 165 में लिखा है
377 आलू (बटाटा)
नाम
आलू (हिंदी); बटाटा (गु.); Potato पोटेटो (अं.); Solanum Tuberosum सोलेनम् टयूबरोजम् (ले.) ।
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