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________________ आगम और विज्ञान] से आगे अलोक की सीमाएं प्रारंभ हो जाती है वहां पदार्थ का सर्वथा अभाव हैं। अलोक में पदार्थ शून्य आकाश है। यहां ब्लैक होल और तमस्काय का सम्पूर्ण वैज्ञानिक विवरण अपेक्षित नहीं हैं केवल कुछ बिन्दुओं की मीमांसा की गई है। [ 175 कॉस्मोलॉजी में आधुनिकतम होने वाली खोजों पर निरंतर दृष्टि रखते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने उपर्युक्त विषय पर उल्लेख किया है कि 'बरमूदा त्रिकोण' (त्रिनिडाड समुद्र तट ) के रहस्यमय क्षेत्र में यात्रा करने वालों ने जो जानकारी दी है वह तमस्काय का आभास देने वाली घटना है। घटना 8 अगस्त 1956 की है जिसका विवरण निम्न प्रकार है । कोष्टगार्ड का एक खोजी और तार बिछाने वाला जहाज 'यामाक्रा' सरगासो समुद्र क्षेत्र की ओर बढ़ रहा था। सरगासो समुद्र क्षेत्र, बरमूदा त्रिकोण के बहमास क्षेत्र के उत्तर में समुद्री घास जालों से भरा जल क्षेत्र माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस जल क्षेत्र के नीचे 'गल्फ स्ट्रीम तथा अन्य प्रवाही धाराएं सक्रिय है । जहाजों, नौकाओं आदि के लिए यह क्षेत्र वर्जित और बेहद जोखिम भरा माना जाता है। • कहा तो यहां तक जाता है कि बरमूदा त्रिकोण में रहस्यमय ढंग से . गायब अथवा नष्ट होने वाले जलयानों, नौकाओं आदि की समाधि इसी जलक्षेत्र में लगी है। तो यामाक्रा खुले समुद्र में आगे बढ़ रहा था कि अचानक राडार संचालक ने पाया कि जहाज के ठीक सामने अट्ठाइस तीस मील दूर तक एक बहुत बड़ा मिट्टी का ढेर सा खड़ा है। उसने अपने अफसर को इसकी सूचना दी। अफसर ने उस ढेर और अपने दिशासूचक यंत्रों को देखा तो उसे भी लगा कि कुछ गड़बड़ है। जहाज के कैप्टन को भी इस सम्बन्ध में सूचित किया गया, पर उसने जहाज की दिशाा नहीं बदली और जहाज आगे बढ़ता गया। कुछ ही घण्टों में जहाज उस मिट्टी के ढेर के बहुत करीब पहुंच गया। पर अब मिट्टी का आभास तो होता था, लेकिन ढेर जैसी ऊँचाई नहीं थी । रोचक और दिलचस्प बात यह थी कि जहाज के शक्तिशाली राडार और सर्चलाइटें यहां बेअसर साबित हो रहे थे। सच तो यह था कि मिट्टी या जमीन भी नहीं थी लेकिन अब पानी की ऐसी विचित्र सतह थी जो उत्तरपूर्व से दक्षिण-पूर्व की ओर ऊंचे उठते हुए जमीन के टुकड़े या मिट्टी के ढेर जैसे मालूम दे रही थी । सूनी, ठण्डी मौत की जीती-जागती अनुभूति थी वह । लेकिन 'यामाक्रा' के कप्तान और चालक दल ने विलक्षण साहस का परिचय
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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