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________________ 174] [ जैन विद्या और विज्ञान नहीं सकता। यदि गुजरता है, तो उस गड्ढे में गिर जाता है, उसमें विलीन हो जाता है। कृष्णराजि का आकार त्रिकोण, चतुष्कोण अथवा षट्कोण है, वहां तमस्काय का आकार प्रारम्भ में एक प्रदेश-श्रेणी-रूप रेखात्मक है और ऊपर उठ कर वह मुर्गे के पिंजरे की भांति आकार वाला अर्थात् चतुरस्त्रात्मक हो जाता है। वृति के अनुसार प्रदत्त स्थापना से यह अनुमान लगाया जा सकता वैज्ञानिक मान्यता वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार स्थिर होने के पश्चात् कृष्ण विवर का आकार पूर्ण वृत होता है (देखें - कृष्णराजी व तमस्काय के चित्र) इस विवरण के अतिरिक्त विज्ञान जगत में यह माना गया है कि यह संभावित है कि जो पदार्थ ब्लैक होल में चला जाता है, वह इस ब्रह्माण्ड । में कहीं बाहर निकलता है। ये ब्लैक होल कितने व्यास और लम्बाई के है, . आकाश में इनका छोर कहां है यह ज्ञात नहीं हैं किन्तु जहां भी पदार्थ ब्लैक होल से बाहर निकलता है वह व्हाइट होल होगा। इस प्रकार जिस छोर से पदार्थ आकर्षित होगा वह उसके लिए ब्लैक होल का काम करेगा। इस प्रकार एक ब्रह्माण्ड से दूसरे ब्रह्माण्ड में पदार्थ का आवगमन संभव है। भौतिक शास्त्री हांकिग तथा पेनरोज ने साठ के दशक में यह माना था था कि ब्लैक होल किसी दूसरे अंतरिक्ष का द्वार हो सकता है। दो ब्रह्माण्डों को मिलाने वाली गुफा को वार्म होल कहा है। अगर ब्लैक होल घूमने लगे तो यह स्थान एक अंतरिक्ष से दूसरे अंतरिक्ष में जाने के लिए मार्गस्थल का काम करेगा लेकिन इस यात्रा में लाखों वर्ष लगने की संभावना रहेगी। ब्लैक होल की यह आवश्यक किन्तु अधूरी जानकारी है। वर्तमान में इजरायली खगोलविदों का मानना है कि प्रत्येक ब्लैक होल में एक अनन्त घनत्व वाला विलक्षण बिन्दु होता है। इस बिन्दु पर पंहुचते ही पदार्थ का सर्वनाश हो जाता है। ब्रू विश्वविद्यालय के भौतिक शास्त्री पिरान ने सिद्ध किया है कि ब्लैक होल से सुरक्षित निकल पाने का कोई रास्ता नहीं है। जो भी वस्तु ब्लैक होल में गुजरने के लिए प्रवेश करेगी वह खुद ही रुकावट का बिन्दु बन जाएगी। अतः ब्लैक होल किसी अन्य ग्रह में जाने का रास्ता नहीं हो सकता। जैन दृष्टि, पिरान के मत के निकट है क्योंकि ऊर्ध्व लोक में तमस्काय का एक छोर लोक की परिधि के समीप है जहां
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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