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[जैन विद्या और विज्ञान
देते हुए जहाज का आगे बढ़ाना जारी रखा। प्रवंचना भरे इस जल-क्षेत्र में प्रवेश करते ही बेहद तेज जलने वाली कार्बन आर्क बत्तियां भी एक बुझती चिंगारी से ज्यादा चमकदार नहीं रह गई थीं। चालक-दल के सदस्यों में खांसी का ऐसा दौर चला कि रोके नहीं रुका। जहाज के इंजन में 'स्टीम प्रेशर' खत्म होने लगा। हारकर कैप्टन को जहाज मोड़ने और लौट चलने का आदेश देना पड़ा। अनुमान से सब काम किया गया लेकिन कई घण्टे जीवन-मृत्यु से जूझते इस जहाज के लोगों को जब सुबह की रोशनी मिली तब उनक आश्चर्य की सीमा नहीं रही कि दूर-दराज तक उस प्रवंचना का कोई नामो-निशान नहीं था।
इससे ज्ञात होता है कि दो हजार वर्ष पूर्व जैनों को सृष्टि-विज्ञान के संबंध में गहरी अभिरुचि थी। यह कहना न्यायसंगत नही होगा कि ब्लैक होल और तमस्काय एक ही है किन्तु यह कहा जा सकता है कि प्रकाश और अंधेरे को समझने का प्रयास, मानव इतिहास में लगातार हुआ है।
एक वैज्ञानिक ने पूछा - दीपक में प्रकाश कहां से आया ? विद्यार्थी ने फूंक मार कर दीप बुझा दिया और पूछा प्रकाश कहाँ गया ? यह प्रश्न आज भी जीवित है।
कवि की ये पंक्तिया कितनी सटीक है :तुम दीया जलाओ, अंधेरा बाहर निकल जाएगा। लेकिन अंधेरे को बाहर करने से दीया नहीं जलता।
जैनों ने प्रकाश और अंधेरे के कणों को स्वतंत्र पदार्थ माना हैं। अंधेरा, प्रकाश का अभाव नही हैं। यह स्वतंत्र पुद्गल पदार्थ है।
ईसाई परम्परा में कहा है - जगत की रचना में ईश्वर ने पृथ्वी पहले ही दिन बनाई मगर पानी की सतह और गहराई में अंधेरा व्याप्त था। ईश्वर ने फिर प्रकाश को उत्पन्न किया जिससे दिन और रात प्रारम्भ हुए। अंधेरे और प्रकाश की कहानी अनादि काल से चली आ रही है।