________________
172 ]
[ जैन विद्या और विज्ञान
विषमताएं
1. तमस्काय और कृष्णराजि में मुख्य अन्तर यह है कि तमस्काय मुख्य रूप में अप्कायिक (जल) है, जबकि कृष्णराजि मुख्यतः
पृथ्वीकायिक (पृथ्वी) है। 2. तमंस्काय में बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय नहीं है,
कृष्णराजि में बादर अप्काय, बादर अग्निकाय एवं बादर
वनस्पतिकाय नहीं हैं। 3. तमस्काय और कृष्णराजि दोनों में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र
एवं तारा-रूप का पर्ण अभाव है, किन्त जहाँ तमस्काय के परिपार्श्व में चन्द्रमा आदि पांचों होते हैं तथा पार्श्ववर्ती चन्द्र, सूर्य की प्रभा तमस्काय में आकर धुधली बन जाती है, वहाँ कृष्णराजि में
चन्द्रमा, सूर्य की आभा का सर्वथा अभाव है। 4. दोनों में बड़े मेघ संस्विन्न होते हैं, संमूर्छित होते हैं और बरसते हैं तथा वह (संस्वेदन, समूर्छन, वर्षण) देव, नाग और असुर भी करते हैं; पर तमस्काय में जहां स्थूल गर्जन और विद्युत और नाग तीनों करते हैं, वहां कृष्णराजि में. केवल कोई देव करता
है, असुर और नाग नहीं करते। . विज्ञान में कृष्ण विवर (Black Hole) ___आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार प्रकाश के अणुओं (जिन्हें फोटॉन' कहा जाता है) पर भी गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव होता है। अतः प्रकाश की गति भी इससे प्रभावित होती हैं। सामान्य स्थिति में ताराओं से प्रकाश निकलता रहता हैं और चारों ओर फैलता है किन्तु कुछ तारे ऐसे होते हैं जिनमें द्रव्यमान या संहति (Mass) अत्यन्त अधिक मात्रा में तथा सघन रूप में होती है। उनका प्रकाश उनके गुरुत्वाकर्षण के कारण उनसे बाहर निकल कर फैल नहीं सकता। उनकी सतह से जो भी प्रकाश बाहर फैलने की कोशिश करता है, तो उसे भी थोडी दूर पहुंचने पर ही तारे के भीतर का गुरुत्वाकर्षण पुनः खींच लेता है। इसकी वजह से वह तारा 'कृष्ण' वर्ण वाला दिखाई देता है। विज्ञान ने ऐसे तारे को 'कृष्ण विवर' (ब्लैक होल) की संज्ञा दी हैं। जब प्रकाश जैसे अति सूक्ष्म अणुओं को भी कृष्ण छिद्र अपने चंगुल से निकलने नहीं देता, तब यह स्पष्ट है कि यदि कोई भी अन्य भौतिक पदार्थ . या आकाशीय पिण्ड उसके निकट आएगा तो वह अपनी ओर उसे खींच लेगा और अपने में आत्मसात कर लेगा।