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[ जैन विद्या और विज्ञान
है। इसमें वायु प्रवेश नही पा सकती। तमस्काय इस ब्रह्माण्ड की असीमांकित परिधि पर चारों ओर वक्रीय रूप से अवस्थित है, यह संभव है कि शिलाखण्डों की काली आभा, सूक्ष्म जल के कणों से परावर्तित होती हुई, बिखरती हुई कालेपन को घना कर देती है। कृष्ण-राजि क्या है?
जैन साहित्य में काले शिलाखण्डों (कृष्ण-राजि) के विशेष आकार तथा नाम ही बताए है। आकाश में दो त्रिकोणी, दो षटकोणी तथा चार चतुष्कोणी है। इसके बीच आठ अवकाशान्तर हैं। पहलवानों के कुश्ती के लिए जिस प्रकार समचतुष्कोण अखाड़ो का निमार्ण किया जाता है इसी प्रकार ये आठ शिलाखण्ड परस्पर में जुड़े हुए है। जिससे आठ ऐसी भूल-भूलैया वाली पंक्तिओं को बनाते हैं जिसमें फंस जाने पर निकलना कठिन होता है। .
जैनों ने तारो को ऊर्ध्व लोक के प्राणिओं (देवताओं) का वाहन माना है जिसमें देवता गति करते है। जब ये विमान तमस्काय के पास से गुजरते . हैं तो तमस्काय के अपार आकर्षण के कारण, तमस्काय में फंस जाते हैं उसमें से बाहर निकलना अत्यन्त कठिन बताया है। इस स्थिति की तुलना कारावास से की गई है कि तमस्काय, एक कारावास का स्थान है। जहां उसके भंवर में आने से तारे ध्वस्त हो जाते है। ब्लैक होल क्या है ?
अब से कुछ वर्षों पूर्व ब्रह्माण्ड को तारों, उनके ग्रहों एवं उपग्रहों का समूह रूप माना जाता रहा। मगर वैज्ञानिकों से आश्चर्यजनक खोज कर ये पता लगाया कि ब्रह्माण्ड में अत्यधिक घने एवं विशाल गुरुत्वाकर्षण वाले ऐसे असंख्य पिण्ड भी विद्यमान हैं जिनके आकर्षण में प्रकाश भी समाहित हो जाता है। इन अंधकूपों को ब्लैक होल कहा गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार जब कोई विशाल तारा अपने जीवन चक्र के अंतिम पड़ाव पर होता है तब उसकी बाहरी वायु निष्क्रिय होकर केन्द्र की तरफ समाहित होती जाती है। विनष्ट होते हुए तारों का आयतन घटता है और इस घटते हुए आयतन के कारण घनत्व बढ़ जाता है और उसी के साथ उसका गुरुत्वाकर्षण भी बढ़ जाता है। अंतिम चरण में यह गुरुत्वाकर्षण इतना सघन हो जाता है कि तारे का समस्त बाहरी पदार्थ एक भयानक विस्फोट और चकाचौंध प्रकाश के साथ . ब्लैक होल में परिवर्तित हो जाता है। इस ब्लैक होल को मृत तारों का स्थान कहा जाता है। जहां का आकाश वक्रीय हो जाता है।