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[ जैन विद्या और विज्ञान .
परिस्थितियां भी मानव जीवन के अनुकूल नहीं है। भारहीनता के कारण मनुष्य तैर सकता है। उल्काओं से टकराने का डर
बराबर बना रहता है। ऐसी परिस्थितियों में यांत्रिक संरक्षण के साथ अंतरिक्ष की यात्राएं हो रही हैं जहां अंतरिक्ष यान 30000 से 40000 मील प्रति घंटा की रफ्तार से पृथ्वी के चक्कर लगाता है। अंतरिक्ष यान में दाब रहित स्पेस-सूट पहनने होते हैं और बाहर विचरण करते समय दाब युक्त स्पेस सूट पहनना होता है। ऑक्सीजन का साथ होना आवश्यक होता है। अंतरिक्ष यान में 20° F से 200° F तक तापमान रखा जाता है। विद्याचारण साधु
जैन साहित्य में कहा गया है कि जंघाचारण और विद्याचारण साधु आकाश गमन करते हैं। भगवती सूत्र में कहा है कि विद्याचारण साधु सूत्राभ्यास के कारण आकाश गमन करने की लब्धि प्राप्त करते हैं। बेले-बेले (क्रमिक रुप से दो दिन लगातार निराहार रहने के बाद एक दिन आहार लेना और फिर दो दिन निराहार रहना) तप करते हैं। ऋद्धिवान देवता तीन चुटकी में जिस तरह जम्बू द्वीप की परिधि तीन लाख सोलह हजार से कुछ अधिक योजन के तीन चक्कर काट लेते हैं, उस गति से विद्याचारण साधु मानुषोत्तर पर्वत पर जाकर एक उपपात करते हैं। फिर दूसरे उपपात से सीधे नन्दीश्वर द्वीप पहुंच जाते हैं। वहां से लौटते समय फिर मानुषोत्तर पर्वत पर विश्राम लेते हैं। इसी प्रकार गमन करते हए मेरु पर्वत पर जाते हैं तो पहला विश्राम नन्दनवन पर लेते हैं और दूसरे उपपात में एक अन्य वन पहुंच जाते हैं, लौटते समय फिर नन्दनवन में ठहरना पड़ता है। जंघाचारण साधु
जंघाचारण साधु तेले-तेले (क्रमिक रुप से तीन दिन लगातार निराहार रहने के बाद एक दिन आहार लेना और फिर तीन दिन निराहार रहना) तप करते हैं। इनकी गति विद्याचारण से सात गुनी अधिक है। ये सीधे तेरहवें रुचक द्वीप पर पहुंच जाते हैं लेकिन लौटते समय मानुषोत्तर पर्वत पर विश्राम लेना होता है। भगवती सूत्र में कहा है कि भावितात्मा अनगार (वैक्रिय लब्धि के सामर्थ्ययुक्त) तलवार की धार के ऊपर रह सकते हैं फिर भी उनके छेदन नहीं होता है। इस वर्णन के अध्ययन से यह सुनिश्चित होता है कि लब्धि प्राप्त अनगार (साधु) कठिन प्रयोग कर सकते हैं जो आज चमत्कारिक