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आगम और विज्ञान ]
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भावितात्मा द्वारा आकाश-गमन
पिछले अध्याय में भावितात्मा द्वारा नाना रूपों के निर्माण का अध्ययन किया है। इसी भांति भावितात्मा द्वारा आकाश गमन का विषय समझना चाहिए क्योंकि इस प्रकरण के अन्त में भी यही कहा गया है कि भावितात्मा ने क्रियात्मक रूप से न तो ऐसी विक्रिया की न करता है और न करेगा। अतः यह वर्णन भी भावितात्मा के सामर्थ्य का ही विवेचन करता है। इसमें भी यही संभावना बनी रहती है कि कोई भावितात्मा ( मायावी ) के लिए आकाश-गमन, विक्रिया से करना संभव हो सकता है।
आकाश-गमन के विषय से संबंधित ज्ञान, आज विज्ञान के पास है क्योंकि बीसवीं शताब्दी में अंतरिक्ष की अनेक उड़ाने हो चुकी हैं। पाठकों के लिए हम इस विषय से संबंधित सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं।
जैविक दृष्टि से अंतरिक्ष का विभाजन निम्न प्रकार से माना जाता है । (i)0 से 12000 फुट की ऊँचाई तक मानव जीवन की संभावनाएं
हैं। इसके ऊपर ताप और दाब की कठिनाइयां हैं लेकिन 63000 . फीट की ऊँचाई तक मुश्किलों के साथ मानव जीवन संभव है। (ii) 63000 फीट से 140 मील की ऊँचाई तक आंशिक रूप से अंतरिक्ष का क्षेत्र माना जाता है। 140 मील से 600 मील और इससे ऊपर, पूर्ण रूप से अंतरिक्ष का क्षेत्र आ जाता है जहां मानव जीवन असंभव है क्योंकि यहां दबाव पूर्ण रूप से शून्य हो जाता है। पूर्ण निर्वात है।
मानव जीवन के लिए तथा इस औदारिक शरीर के लिए विशेष ताप और दाब की आवश्यकता रहती है।
(iii) 60 मील से 650 मील की ऊँचाई में 1X 107 मि.मी. से 1X10-11 मि.मी. दाब रहता है जो इस शरीर में दाब बनाए रखने के अनुकूल नहीं है अतः इस दाब में जिंदा रहना संभव नहीं। इसमें ऊपर पूर्ण अंतरिक्ष में ताप 455° F हो जाता है तथा विविध कास्मिक विकिरणों का प्रभाव बढ़ जाता है अतः वहां भी मानव जीवन संभव नहीं है। यहां शून्य गुरुत्व और भारहीनता जैसी