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[ जैन विद्या और विज्ञान
निष्कर्ष ___यह आश्चर्यजनक बात है कि उपर्युक्त वर्णन के अन्त में सूत्र में कहा गया है कि भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप से न तो ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा। अतः इस वर्णन में, भावितात्मा अनगार के सामर्थ्य का ही विवेचन मात्र हुआ है।
भावितात्मा अनगार सम्यक् दृष्टि होते हैं इसलिए यह संभावना बनती है कि वे लब्धि का प्रयोग नहीं करेंगे। स्थानांग सूत्र में भावितात्मा को 'ऋद्धिमान' कहा गया है। भगवती में भावितात्मा की ऋद्धि का विस्तृत विवरण मिलता है। सूयगड़ो में 'श्रुत भावितात्मा' का प्रयोग मिलता है। भगवती में वीतराग के लिए भी भावितात्मा का प्रयोग किया गया है। इन सारे संदर्भो से यह निष्कर्ष निकलता है कि आगम-युग में भावितात्मा शब्द आदरसूचक तथा बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है। महाभारत और योगवशिष्ठ में भी भावितात्मा का प्रयोग मिलता है। इस दृष्टि से यह सही लगता है कि जो संवृतात्मा है वे वैक्रिय लब्धि का प्रयोग नहीं करते हैं किंतु, भावितात्मा (मायावी) कर सकते हैं। ऐसे प्रकरण आगम साहित्य में उपलब्ध हैं।
__ आचार्य महाप्रज्ञ ने इस विषय के साथ लेसर किरणों का उल्लेख कर खोज के लिए मार्ग को प्रशस्त कर दिया है।