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________________ आगम और विज्ञान] [167 माने जाते हैं। इन प्राचीन प्रयोगों के सन्दर्भ में आज की अन्तरिक्ष उड़ान की “उपब्धियों की चर्चा करेंगे। अंतरिक्ष उड़ान ___अंतरिक्ष उड़ानों के निष्कर्षों से स्पष्ट है कि औदारिक शरीर अपने आवश्यक ताप और दाब के बिना सुरक्षित नहीं रह सकता। मेडिकल साइंस के अनुसार मानव शरीर के सुरक्षित जीवन के लिए 76 सेंटीमीटर दाब (Atmospheric Pressure) और साधारणतः 25 डिग्री सेन्टीग्रेड से 32 डिग्री सेंटीग्रेड ताप की आवश्यकता रहती है। विशेष परिस्थितियों में शून्य डिग्री सेंटीग्रेड से 50 डिग्री सेंटीग्रेड तक मानव शरीर संरक्षण कवच में रह सकता है। आगमिक दृष्टि से यह माना जा सकता है कि वैक्रिय पुद्गल जो अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं, अगर साधु, सूक्ष्म शरीर का कवच बना लें तो वह ऊंचाईयों तक जा सकता है। श्वेताम्बर परम्परा में पर्याप्त वायुकाय जीवों में वैक्रिय शरीर होने का उल्लेख है। धवला में पर्याप्त तेजस्कायिक जीवों के भी वैक्रिय शरीर होने का उल्लेख मिलता है। वायुकाय में वैक्रिय शरीर संप्राप्त है पर उसकी रूप-निर्माण करने की शक्ति बहुत कम है। वह पताका के रूप का निर्माण कर सकता है। उसका संस्थान पताका के आकार का है। वह विक्रिया के द्वारा अपने पताका वाले आकार को बड़ा बना सकता है। वायुकाय अपनी शक्ति, अपनी क्रिया और अपने प्रयोग से गति करता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने भगवती भाष्य में बताया है कि वायुकाय का मूल शरीर औदारिक है किंतु उत्तर शरीर वैक्रिय है। अतः वायुकाय में वैक्रिय शरीर का अस्तित्व स्वीकृत है। वैक्रिय शरीर का अर्थ है विविध क्रियाएं करने वाला शरीर। वायुकाय विक्रिया से विविध रूपों का निर्माण करने में समर्थ नहीं है किंत वह विविध प्रकार की गति करने में समर्थ है। अतः जंघाचारण और विद्याचारण साधु आकाश-गमन के समय सूक्ष्म शरीर का कवच बनाकर और इसके लिए बादलों की या वायुकाय की विक्रिया शक्ति का सहयोग लेकर संभवतः गति करते होंगे। - आचार्य महाप्रज्ञ 'प्राच्य विद्या' पुस्तक में लिखा है कि 'जंघाचारण ऋद्धि के द्वारा साधक मकडी के जाले से निष्पन्न तंतु के सहारे आकाश में उडान भर सकता है। जंघाचारण मुनि सूर्य की किरणों के सहारें भी गमन करता है। जंघाचारण ऋद्धि के द्वारा भूमि से चार अंगुल उपर आकाश में पिंडली का उत्क्षेप-निक्षेप कर शीघ्र चलने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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