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[ जैन विद्या और विज्ञान
को परिभाषित करते हुए लिखते हैं कि एरण्ड का बीज जैसे उछलता है वैसे एक परमाणु स्कन्ध से दूसरे परमाणु स्कन्ध का चटक कर उछलना उत्कारिका भेद है । पण्णवणा सूत्र में पांच प्रकार के भेद बताए हैं उसमें पांचवा भेद उत्कारिका भेद है ।
1. खण्ड भेद
2. प्रतर भेद
3. चूर्णिका भेद
4. अनुतरिका भेद
5. उत्कारिका भेद
पतंजलि में भी अणिमा आदि आठ ऐश्वर्यों का निरूपण किया है।
भावितात्मा अनगार जिसने भावनाओं का अभ्यास किया है, वह भी नाना रूपों का निर्माण कर सकता है। आचार्य महाप्रज्ञ इसे संकल्प शक्ति का तथा भावना का प्रयोग मानते हैं। यदि भावना का प्रयास पुष्ट हो जाए, संकल्प शक्ति का विकास हो जाए तो विविध रूपों के निर्माण में कोई बाधा नहीं आती। आहारक लब्धि के द्वारा एक पुतले का निर्माण करना, विचारों का सम्प्रेषण करना, विचारों को मंगवाना, अपना प्रतिबिम्ब प्रेषित करना - ये सारे संकल्पशक्ति के चमत्कार हैं। भावितात्मा अनगार नाना रूप बनाते समय वैक्रिय समुद्घात करता है ।
आचार्य महाप्रज्ञ ने वैक्रिय समुद्घात के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा
है कि
आत्मा शरीर में रहती है। उसके असंख्यात प्रदेश (अवयव) होते हैं। विशेष परिस्थिति में वे प्रदेश शरीर से बाहर भी निकल जाते हैं। उनका बाहर निकलना समुद्घात कहलाता है। समुद्घात के सात प्रकार निर्दिष्ट हैं
1. वेदना समुद्घात
2. कषाय समुद्घात
3. मारणान्तिक समुद्घात
4. वैक्रिय समुद्घात
5. तैजस समुद्घात
6. आहारक समुद्घात
7. केवली समुद्घात