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________________ 160] [जैन विद्या और विज्ञान . भावितात्मा द्वारा नाना रूपों का निर्माण भारतीय प्राच्य साहित्य में ऐसे प्रकरण उपलब्ध हैं जिनमें स्वयं के अनेक अथवा नाना रूपों के निर्माण का वर्णन मिलता है। इसे चामत्कारिक शक्ति ही कहा जाता रहा है। जो व्यक्ति विशेष प्रकार की साधना कर लेता है वह अपने विविध रूप बना लेता है। जैन आगम भगवती में भगवान महावीर और उनके प्रथम गणधर गौतम के बीच के प्रश्नोत्तर में ऐसे प्रकरण उपलब्ध हैं जिसमें भावितात्मा अनगार की वैक्रिय शक्ति के विविध पक्षों पर विमर्श किया गया है। वैक्रिय लब्धि, नाना रूपों के निर्माण में सहायक बताई गई है। विस्मृत विषय आचार्य महाप्रज्ञ ने इस संबंध में विस्तृत टिप्पणी की है तथा लिखा है कि वैक्रिय शक्ति का विकास देवों में जन्मना होता है, मनुष्यों में साधनाकृत होता है। इसका संबंध अध्यात्म विद्या अथवा रहस्य विद्या (Occult Sciences) से है। वर्तमान में भावितात्मा और वैक्रिय शक्ति के साधना सूत्र विस्मृत हो गए हैं। इन शक्ति सूत्रों की संकलना भी भगवती सूत्र का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। इस विस्मृत विषय के संबंध में हम पाठकों को जानकारी देने का प्रयत्न करेंगे। भावितात्मा का सामर्थ्य भावितात्मा शब्द जैन आगमों का महत्वपूर्ण शब्द है। इसके पीछे रहस्यमयी भावना छिपी हुई है। जो भावितात्मा होता है वह अपनी भावना के अनुसार काम करने में सक्षम होता है। भावना का अर्थ केवल कुछ सोच लेना मात्र नहीं है। इसका अर्थ है - हमारे ज्ञान तन्तुओं को तथा कोशिकाओं को अपने वशवर्ती कर लेना, उन पर अपनी भावना को अंकित कर देना। हमारे शरीर में अरबों-अरबों न्यूरोन्स है, जीव कोशिकाएं है ये न्यूरोन हमारी अनेक पृवत्तियों का नियमन करते हैं। ये नियामक है। जो संकल्प न्यूरोन तक पहुंच जाता है वह सफल हो जाता है। भावितात्मा का अर्थ, संयम और तप इन दो भावनाओं से भावित आत्मा वाला बताया है। भावितात्मा प्रायः अवधिज्ञान तथा लब्धियों (शक्तियों) से भी सम्पन्न होते हैं। ये तपस्वी मुनि होते हैं। लब्धियां भी अनेक प्रकार की होती
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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