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________________ 156] [ जैन विद्या और विज्ञान देशान्तर देशान्तर गति = - - = ० अनन्त समय वैज्ञानिकों ने सैद्धान्तिक रूप से उपुर्यक्त गणितीय समीकरण को माना है, लेकिन वास्तव में कोई कण अनन्त गति को प्राप्त नहीं करता। गति का संबंध आकाश और काल से है अतः इस संबंध में हम आकाश के तीन आयाम की जानकारी देंगे। आकाश के तीन आयाम आकाश दिखाई नहीं देता लेकिन आकाश में पड़ी हुई वस्तु दिखाई देती है। अगर किसी कमरे में एक पुस्तक टेबल पर पड़ी हुई हो तो उसका स्थान का विवरण देते हुए यह कहा जा सकता है कि वह पुस्तक एक तरफ से (लम्बाई वाली) दीवार से 5 मीटर दूर है तथा दूसरी तरफ से (चौड़ाई वाली) दीवार से 3मीटर दर है और जमीन से 4 मीटर उपर टेबल पर है। इस प्रकार आकाश में वस्तु के स्थान का ज्ञान तीन आयामों से या गणित की भाषा में तीन अक्षों (Coordinates) से किया जाता है। इसी प्रकार आकाश में अवस्थित सूर्य, चन्द्र आदि की गति और स्थिति तीन आयामों से निर्धारित होती है। सच तो यह है कि तीन अक्षों के द्वारा हम समस्त जगत की वस्तुओं के स्थान को बता सकते हैं। इसी चित्र में दर्शाया गया है कि आकाश के तीन आयाम हैं, जो परस्पर में लम्बवत हैं। वे हैं - 1. अ - अ 2. ब - ब' 3. स - स
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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