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आगम और विज्ञान]
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परमाणु की गति
आचार्य महाप्रज्ञ गति प्रकरण को विस्तार देते हुए लिखते हैं कि जैन आगम साहित्य में परमाणु की मंदतम गति और तीव्रतम गति का उल्लेख आया है। वहां कहा गया है कि - - (i) परमाणु अगर मंदतम गति से चले तो एक समय (काल का
सूक्ष्मतम अंश) में एक आकाश प्रदेश से दूसरे निकटतम आकाश
प्रदेश (Space) तक ही गति करता है। (ii) परमाणु अगर तीव्रतम गति से चले तो एक समय में लोक के
एक सिरे से दूसरे सिरे तक गति करता है। लोक के दो सिरों 'की अधिकतम दूरी 14 रज्जु है जो असंख्य योजन के समान
यहां परमाणु की तीव्रतम गति का विषय चिन्तनीय है क्योंकि विज्ञान के अनुसार तीव्रतम गति केवल प्रकाश के कण की निर्वात (Vacuum) में होती है जो एक सैकण्ड में एक लाख छियासी हजार मील की है। इस दृष्टि से जैन सम्मत परमाणु की गति, अवैज्ञानिक प्रतीत होती है। महाप्रज्ञ जी ने इसके समाधान में, पदार्थ की गति दो प्रकार की बताई है -
(i) स्पृशद् गति (ii) अस्पृशद् गति
स्पृशद् गति परिणाम का अभिप्राय स्थूल पदार्थ की गति से है जो प्रयत्न विशेष से क्षेत्र प्रदेशों का स्पर्श करते हुए तथा अन्य परमाणु और पदार्थ के स्पर्श करते हुए किसी काल खण्ड में होती है। यह गति स्वाभाविक भी हो सकती है और प्रायोगिक भी। यह साधारण गति आकाश काल सापेक्ष होती है। इसमें देशन्तर और काल भेद का अनुपात गति की व्याख्या करता है। - अस्पृशद गति की विशेषता यह है कि सूक्ष्म पदार्थ गति करता हुआ क्षेत्र प्रदेशों (आकाश) से और अन्य पदार्थों से अप्रभावित रहता है तथा उनको स्वयं भी प्रभावित नहीं करता। - अस्पृशद् गति, स्थूल पदार्थ में नहीं होती। इस गति में 'समय' शून्य हो जाता है ।