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[ जैन विद्या और विज्ञान
अतः शक्र, वज और चमर का विभिन्न लोकों में गतियों का अंतर, घनत्व और गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता से हुआ है।
गति के इस प्रकरण से यह माना जा सकता है कि जैनों ने गुरुत्वाकर्षण में धन (+) और ऋण (-) दोनों गुणधर्म मानकर, अपनी वैज्ञानिक क्षमता का परिचय दिया है। विज्ञान के क्षेत्र में न्यूटन के समय से गुरुत्वाकर्षण का अर्थ केवल आकर्षण से ही लिया जाता रहा है लेकिन अब विकर्षण को भी गुरुत्वाकर्षण का ही गुणधर्म माना जाता है। जिस प्रकार विद्युत शक्ति धन (+) और ऋण (-) दो प्रकार की होती है वैसे ही गुरुत्वाकर्षण का धन (+)
और ऋण (-) मानकर जैनों ने गति-विज्ञान के नियम निर्धारित किए हैं जो उनकी विकसित प्रज्ञा का परिणाम है।
___ आचार्य महाप्रज्ञ ने जैन दर्शन के गणितीय प्रकरणों को विस्तार देते हुए विज्ञान सम्मत अध्ययन करने की जो प्रेरणा दी है, यह उनकी जैन दर्शन को बहुत बड़ी देन है।