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प्रमाणित नहीं किया जा सकता। विज्ञान ने अपने शोधकार्य से उन सच्चाईयों को पुनः प्रतिष्ठापित कर दर्शन की सत्यता के लिए महान कार्य किया है। उन्हें विज्ञान की भाषा अर्थात् युग की भाषा में प्रस्तुत किया है। आज जो विज्ञान सम्मत है वही सर्वग्राह्य बन सकता है।
विज्ञान स्थूल-मूर्त से सूक्ष्म-मूर्त की ओर चल रहा है जबकि अध्यात्म क्रमशः मूर्त से अमूर्त की ओर। कुल मिलाकर दोनों की यात्रा सूक्ष्मोन्मुख है । अतीन्द्रिय सत्य (आत्म प्रत्यक्ष ) जो दर्शन जगत का एक महत्वपूर्ण विषय था, वह हजारों वर्षों तक अज्ञेय बन कर ठहर गया था, उसे विज्ञान ने ज्ञेय बना दिया । आभामण्डल, ध्यान से रसायनों का परिवर्तन, ग्रन्थीय स्राव और कर्म प्रभाव आदि को मापने के अनेक वैज्ञानिक उपकरण हमारी धर्मयात्रा में सहयोगी रहे हैं। उन्होंने धर्म और दर्शन की मान्यताओं के संदर्भ में फैली अनेक निराशाओं, भ्रान्तियों एवं समस्याओं को समाहित किया है।
धर्म और विज्ञान के तुलनात्मक अध्ययन की यह परम्परा इन कुछ वर्षों में बहुत बलवती बनीं है। प्रश्न होता है कि जहां कोई संदेह नहीं, क्या उस तत्त्व को विज्ञान के तराजू पर तोलना जरूरी है ? समाधान की भाषा में कहा जा सकता है कि वर्तमान पीढ़ी धर्म की मान्यता को प्रयोगशाला में प्रमाणित हो जाने के बाद ही स्वीकार कर पाने की मानसिकता के साथ जी रही है। आज पूरे विश्व में धर्म, दर्शन, स्वास्थ्य, गणित, भूगोल, खगोल जैसे अनेक विषयों में विज्ञान नित्य नई खोजें कर रहा है। फिर हम तुलनात्मक अध्ययन की उपयोगिता को कैसे नकार सकते हैं ? जिन्होंने नकारा है वो भी अब इन सत्यों को स्वीकार कर रहे हैं। आज सभी धर्मों और दर्शनों की प्रासंगिकता विज्ञान ने बढ़ाई है।
जैन दर्शन के ऐसे अनेक विषय हैं, जिन्हें जन भाषा में स्पष्टता से प्रस्तुत करना उनकी अन्तरात्मा तक पहुंचना दुरूह कार्य हो रहा था, उस कार्य को विज्ञान की आधुनिक नवीनतम खोजों ने आसान बना दिया है। एक समय था जब युवा समाज को मात्र श्रद्धा से प्रणत किया जा सकता था पर आज संदर्भ बदल गए हैं। श्रद्धा की गहराई बढ़ गई है।
आचार्य महाप्रज्ञ आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक व्यक्तित्व के धनी हैं। यद्यपि उन्होंने विद्यालय की किसी प्रयोगशाला में कभी विज्ञान नहीं पढ़ा तथापि जैन दर्शन के गहनतम विषयों की सटीक वैज्ञानिक व्याख्याएं दे रहे हैं। इसी कारण उनके द्वारा लिखित ग्रन्थ विद्वानों द्वारा ग्राह्य एवं बहुमान्य हो रहे हैं। वे भारतीय एवं विदेशी दर्शनों के महान ज्ञाता और भाष्यकार हैं। इसके साथ ही वे अध्यात्म एवं विज्ञान के सापेक्ष व्याख्याकार भी हैं। वे कहते हैं