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आमुख
दर्शन और विज्ञान दोनों सत्य की खोज के लिए चलते हैं परंतु दोनों में एक मौलिक अंतर है - दर्शन एक आधार को लेकर चलता है किंतु विज्ञान के पीछे कोई एक निश्चित आधार नहीं होता है। संभव है चलते-चलते दोनों एक दिन एक जगह पहुंच जाएं और न भी पहुंचे। यात्रा दोनों की लम्बी है।
___ आज का युवा मानस धर्म और दर्शन पर उतना विश्वास नहीं करता जितना वह विज्ञान पर करता है। यद्यपि दर्शन भी किसी व्यक्ति से जुड़ा नहीं होता, वह सत्य से जुड़ा होता है परंतु कभी-कभी वह दर्शन किसी श्रद्धेय पुरुष के साथ जुड़ कर अपनी प्रामाणिकता पर एक प्रश्न चिन्ह लगा लेता
.. बुद्ध ने अपने निष्यों से एक दिन कहा - किसी बात को तुम इसलिए सत्य मत मानना कि वह परम्परा से चली आ रही है, अतः वह सत्य है। इसलिए भी मेरी बात मत मानना कि मैं शास्ता हूं, बल्कि तुम्हारा हृदय और मस्तिष्क विवेकपूर्वक उसे स्वीकार करे तो मानना। यही बात भगवान महावीर ने कही - स्वयं सत्य की खोज करो। . दर्शन का लक्ष्य है - मानव को दुख मुक्त करना और यही लक्ष्य विज्ञान का है। आज तक की सारी प्रगति का आधार भौतिक संसाधनों के द्वारा मानव जाति का विकास करना रहा है। भले आज विकसित देशों ने सुख शांति के नाम पर विध्वंस का कार्य किया हो। - आचार्य महाप्रज्ञ अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयकारक महापुरुष हैं। उन्होंने विज्ञान की कसौटी पर धर्म का परीक्षण कर उसे जीया है। उनकी दृष्टि में विज्ञान हमारा विरोधी नहीं बल्कि उपकारी है। अब तक दर्शन और विज्ञान के बीच जो दूरी चल रही थी उसे आधुनिक विज्ञान की खोजों ने कम करके निकटता बढ़ाई है। उनका कहना है, सत्य को सापेक्ष दृष्टि एवं अनेकांत शैली के द्वारा ही व्याख्ययित किया जा सकता है। यद्यपि पूरा जैनदर्शन स्वयं में सम्पूर्ण वैज्ञानिक है। इसलिए उसे किसी वैज्ञानिक उपकरण के द्वारा प्रमाणित करने की अपेक्षा नहीं है फिर भी कुछ सच्चाईयां समय के गर्भ में दब गई, जिन्हें केवल तर्क की कसौटी पर कसकर आज सत्य