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[ जैन विद्या और विज्ञान
(i) कण का अस्तिभाव होता है तो तरंग का नास्ति भाव विद्यमान
रहता है। (ii) तरंग का अस्ति भाव रहता है तब कण का नास्ति भाव विद्यमान
रहता है। यह अस्ति नास्ति भाव स्वगत है, परगत नही। पदार्थ में दो या दो से अधिक विरोधी गुणों का होना ही अस्ति । नास्ति के कथन को जन्म देता हैं। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि स्थूल पदार्थ के स्थूल गुण जो हमारी इन्द्रिय और मस्तिष्क के ज्ञान की सीमाओ में स्पष्ट है वहां अस्ति-नास्ति का कथन विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं है। जहां स्थूल या सूक्ष्म पदार्थ के सूक्ष्म गुणों में होने वाले परिवर्तन हमारी ज्ञान की सीमाओं में स्पष्ट नहीं है और हम केवल उनके परिणाम ही जानते हैं, वहां परिणामों के आधार पर अस्ति और नास्ति के कथन महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। अस्ति, नास्ति भाव के वैज्ञानिक विवेचन की तुलना आगम साहित्य के इस उद्धरण से समझी जा सकती है कि - 'परमाणु सकम्प भी होता है और अकम्प भी। उसमें न तो निरन्तर कम्प
भाव रहता है और न ही निरन्तर अकम्प भाव' । अवक्तव्य
स्याद्वाद का तीसरा महत्त्वपूर्ण अंग 'अवक्तव्य" है। साधारणतः अवक्तव्य का अर्थ है कि किसी प्रसंग या घटना के संबंध में वक्तव्य नहीं दिया जा सके अर्थात् कहा न जा सके। जैनाचार्यों ने स्यादवाद की मीमांसा में यह माना है कि अस्ति अर्थात् 'होना' और नास्ति अर्थात् 'न होना' का युगपत कथन नहीं हो सकता उसे अवक्तव्य कहा है। किन्तु यह तो स्वयं सिद्ध है कि अस्ति और नास्ति का युगपत कथन कैसे हो सकता है ? उदाहरणतः जब हम घड़े के होने का कथन करते हैं उसी समय और उसी स्थिति में उसी को घडे का न होना कैसे कह सकते हैं? यह तो स्वतः सिद्ध है। इसमें कोई दार्शनिक अभिव्यक्ति नही दिखाई देती।
भौतिक विज्ञान में अवक्तव्य शब्द का उपयोग हुआ है। हम इस शब्द के अर्थ को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में जानने का प्रयत्न करेंगे। सूक्ष्म पदार्थ के संबंध में वैज्ञानिक धारणा है कि वह कण रूप में व्यवहार करता है तथा लहर रूप में भी व्यवहार करता है इसलिए उसका किसी विशेष क्षण में व्यवहार सुनिश्चित करने में कठिनाई रहती है। इस स्थिति को अवक्तव्य (Unpredictible)