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द्रव्य मीमांसा और दर्शन]
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के रूप में लिया गया है। 'अनिश्चितता के सिद्धान्त के अनुसार यह कहा जा सकता है कि सूक्ष्म पदार्थ की गति और स्थिति के बारे में एक साथ नहीं जाना जा सकता, इसे भी अवक्तव्य कहा गया है। गति और स्थिति दोनों विरोधी गुण होते हुए, एक ही पदार्थ में उपलब्ध होते हैं। विरोधी गुणों से संबंधी यह वैज्ञानिक चर्चा, स्यादवाद की चर्चा से भिन्न प्रतीत नहीं होती। एक विशेष तथ्य यह भी है कि 'गति-स्थिति' तथा 'कण-लहर' के उदाहरण स्वगत है, परगत नहीं। यहां हमें ध्यान रखना है कि 'अवक्तव्यता सूक्ष्म पदार्थ के निश्चित व्यवहार तथा उसके गुणों को विशेष कालखण्ड में न जानने से सम्बन्धित है। केवल-ज्ञानी (अर्हत्) सूक्ष्म के गुण और व्यवहार को जान लेते हैं तो उनके लिए 'अवक्तव्य' का कोई महत्व नहीं है लेकिन वे भी साधारण ज्ञानी को सूक्ष्म के बारे में समझायेंगे तो उन्हें भी अवक्तव्यता का उपयोग करना पड़ेगा। इससे प्रतीत होता है कि अवक्तव्यता पदार्थ के कारण नहीं है किन्तु ज्ञाता के सीमित ज्ञान के कारण है। गणित की दृष्टि से यह भी माना जा सकता है कि यदि किसी वस्तु की किसी भी अपेक्षा से अवक्तव्यता को संख्यात्मक रूप दे तो यह संख्यात्मक के रूप गणित का अनुपात (Proportion) और सांख्यिकी की प्रायिकता (Probability) भी बन सकता है। इस वैज्ञानिक विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहँच सकते है कि पदार्थ चाहे स्थूल हो या सूक्ष्म हो उसके सूक्ष्म गुणों में होने वाले परिवर्तनों के कथन के लिए ही अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
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