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सापेक्षता
(i)
[ जैन विद्या और विज्ञान
आइंस्टीन ने आकाश काल की अपेक्षा से जगत में होने वाली घटनाओं को समझाया है। इस सिद्धान्त के अनुसार जगत की कोई भी घटना निरपेक्ष नहीं हैं। एक प्रचलित उदाहरण है कि अगर धरती पर खड़ा व्यक्ति सूर्य पर खड़े अन्य व्यक्ति से सिग्नल प्राप्त कर अपनी घड़ी में समय मिलाएगा तो क्या धरती के मनुष्य की घड़ी का समय, सूर्य पर खड़े व्यक्ति की घड़ी के समान होगा? आइंस्टीन के अनुसार ऐसा सम्भव नहीं है क्योंकि प्रकाश को सूर्य से धरती पर पहुंचने में जितना समय लगेगा उतना ही दोनों की घड़ियों में अन्तर रहेगा अर्थात् धरती पर खड़े व्यक्ति की घड़ी आठ मिनट पीछे रहेगी जो प्रकाश की गति करने का समय है ।
(ii) 'सापेक्षता का सिद्धान्त' एक अन्य उदाहरण से समझ सकते हैं। जब हम आकाश में तारों को देखते हैं तो प्रतीत होता है कि तारा चमक रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि हम तारों के हजारों वर्ष पूर्व के अस्तित्व को देख रहे हैं क्योंकि तारों की किरणों को धरती पर पहुँचने में हजारों वर्ष लगे हैं। समय के इस अन्तराल में संभवतः वे तारे ठण्डे हो गए हो और वे तारे ब्लैक होल बन चुके हों लेकिन हमें तारा चमकता दिखाई देगा। अतः आचार्य महाप्रज्ञ के यह कहने में सचाई है कि इन्द्रिय ज्ञान सापेक्ष होकर ही सत्य हो सकता है। एक कवि ने भावुकता में निम्न पंक्तियां प्रेषित की हैं जो उपर्युक्त वर्णित सापेक्षता को समझाती हैं ।
“मैं
एक तारे की तरह
दूर किसी आसमान में पैदा हुआ,
जब तक पहुंचेगी
मेरी रोशनी तुम तक
मैं विदा हो जाऊंगा"
(iii) हम किसी भी इन्द्रिय के द्वारा जब वस्तु को जानने का प्रयत्न करते हैं तो किसी न किसी प्रकार की ऊर्जा की आवश्यकता होती है और जो ऊर्जा निरीक्षण में भाग लेती हैं, वह वस्तु के