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द्रव्य मीमांसा और दर्शन]
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ज्ञान और इन्द्रिय ज्ञान । अतीन्द्रिय ज्ञान योगी को होता है या विशेष परिस्थितियों में होता है। वह सामान्य नहीं है। सर्वमान्य ज्ञान, इन्द्रिय-ज्ञान हैं। इसमें इन्द्रिय, मन और बुद्धि तीनों समन्वित हैं। इन्द्रिय ज्ञान के संबंध में निम्न टिप्पणियां अत्यंत महत्वपूर्ण हैं -
(i) इन्द्रिय संवेदन न सत्य होता है और न असत्य होता है। सापेक्ष
होकर वह सत्य होता है और निरपेक्ष रहकर वह असत्य हो जाता
(ii) बुद्धि विकल्प न सत्य होता है और न असत्य होता है। सापेक्ष
होकर वह सत्य होता है और निरपेक्ष रहकर वह असत्य हो जाता
(iii) इन्द्रिय-ज्ञान और वचन-विकल्प की सत्यता सापेक्षता पर निर्भर
है। इसलिए अनेकान्त का दूसरा नाम सापेक्षवाद है। आइंस्टीन का उदाहरण
सापेक्षवाद के संबंध में आइंस्टीन का एक उदाहरण प्रसिद्ध है कि एक : आदमी जलती हुई भट्टी के पास बैठा है और तेज ऊष्मा आ रही है। उसे
वहाँ केवल दस मिनट का समय भी दो घण्टे के समान लगेगा और अगर वही व्यक्ति अपनी प्रेमिका के साथ बात कर रहा होगा तो दो घण्टे दस मिनट के समान लगेंगे। यह काल का बोध, घटना सापेक्ष है। सापेक्षवाद के अनुसार जगत की कोई वस्तु अथवा घटना पूर्ण रूप से आकाश-काल सापेक्ष ही जानी जाती है। उपर्युक्त तुलना से सापेक्षवाद और अनेकान्त की समानता प्रतीत होती है। सिद्धसेन दिवाकर का योगदान __भारतीय धर्मो के माध्यम से संसार व सत्य के शाश्वत दर्शन करने का जितना सार्थक एवं सांगोपांग प्रयत्न भारतीय संस्कृति में हुआ है उतना विश्व ' में और किसी भूभाग में नहीं हुआ है। दर्शन युग में वेदान्त ने पर्याय रहित द्रव्य को यथार्थ माना, और बौद्धो ने वस्तु को क्षण-क्षयी कहा तब द्रव्य के विविध धर्मों के प्रतिपादन के लिए एक से अधिक दृष्टि को स्वीकार करने के कारण, यह विधि अनेकान्त कहलाई। अनेकान्त अर्थ के रूप में जैन आगमों में उपलब्ध रहा है। दिगम्बर मान्यता के अनुसार स्यादवाद के सप्तभंगों का वर्णन सर्वप्रथम आचार्य कुन्दकुन्द (ई- की प्रथम शताब्दी) द्वारा विरचित "प्रवचन सार' एवं 'पंचास्तिकाय' में मिलता है। आचार्य समन्तभद्र ने आत्म