________________
[ जैन विद्या और विज्ञान
नया बना जीव एक तरह से उसी का एक हिस्सा कहा जा सकता है। शारीरिक उम्र के लम्बे अंतर के बाद भी उनकी (दाता एवं क्लोन ) जीव वैज्ञानिक / आनुवंशकीय आयु भी एक समान ही मानी जा रही है। इसी कारण इनके आपसी संबंध को माता-पिता से उत्पन्न पुत्र-पुत्री के स्थान पर दाता- क्लोन कहा जाता है।
132]
क्लोनिंग की उपयोगिता
इस तकनीक के द्वारा मानव के विभिन्न अंगों को प्रयोगशाला में ही विकसित किया जा सकता है जिससे कई असाध्य रोगों को दूर करने में • आसानी होगी। इसके अलावा इस तकनीक से विभिन्न बेकार जीनों को बदला जा सकेगा तथा बुढ़ापा भी रोका जा सकेगा। इसी संदर्भ में मानव क्लोनिंग के प्रयास हो रहे हैं ।
क्लोनिंग के दुष्परिणाम
क्लोनित प्राणियों में यकृत, फेफड़े और हृदय सम्बन्धी बीमारियां बहुत जल्दी पनपती हैं। साढ़े छह वर्ष की आयु में डॉली नामक क्लोन भेड़ असमय बुढ़ापे एवं बीमारी के चपेट में आकर काल कवलित हो गई। जबकि आम तौर पर भेड़ें इससे दुगुनी उम्र तक जीती हैं
क्लोनिंग ने वैज्ञानिक एवं बुद्धिजीवियों को तो प्रभावित किया ही है साथ में दार्शनिक एवं धार्मिक नेताओं को भी चिंतित किया है। यह विषय चुनौती भरा होता जा रहा है क्योंकि जीव विशेष का जैनेटिकल प्रतिरूप अगर पैदा होंगे तो सामाजिक जीवन में कठिनाईयां बढ़ेगी। कारण यह है कि क्लोन, जीव की कार्बन कॉपी के रूप में विकसित होगा। संतोष की बात यह है कि इनके व्यक्तित्व में एक समानता नहीं होगी क्योंकि व्यक्तित्व का निर्माण वातावरण और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा ।
आचार्य महाप्रज्ञ ने आत्म तत्त्व और उससे संबंधित विकासवाद की वैज्ञानिक धारणाओं का जैन मान्यताओं से तुलना कर एक नया अध्याय प्रारम्भ किया है।