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द्रव्य मीमांसा और दर्शन]
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___ (i) वर्गणा का साम्य-जन्म के आरम्भ काल में जीव जो आहार लेता
है, वह उसके जीवन का मूल आधार होता है। माता-पिता के गुण-दोषों का सन्तान के स्वास्थ्य पर जितना प्रभाव पड़ता है,
उतना बुद्धि पर नहीं पड़ता। (ii) पौद्गलिकता - अगर शरीर, भाषा और मन की वर्गणाएं वातावरण
की वर्गणाओं के अनुकूल या प्रतिकूल होती हैं तब उसी के
अनुसार अच्छे और बुरे प्रभाव होते हैं। (iii) खान-पान और औषधि के प्रभाव (iv) ग्रह-उपग्रह की रश्मियों का प्रभाव
इससे विकास और हास की परम्परा निरन्तर चलती है। (vii) क्लोनिंग - कुछ वर्षों से क्लोनिंग एक बहुचर्चित विषय हो रहा है। विशेषकर जब से वैज्ञानिकों ने एक भेड़ का क्लोन तैयार करने में सफलता प्राप्त कर ली है तब से नाना प्रकार के अनुमान लगाए जा रहे हैं। अब यह प्रयास हो रहा है कि मानव जाति के भी नए क्लोन तैयार हो जाएं। क्लोन का अभिप्राय है कि किसी जीव विशेष का जैनेटिक प्रतिरूप पैदा होना। विभिन्न विकसित प्राणी लैंगिक प्रजनन की विधि द्वारा अपनी संतानों को उत्पन्न करते हैं जिसमें नर एवं मादा की जनन कोशिकाओं के आधे-आधे गुणसूत्र मिलकर एक नई रचना करते हैं जिसमें जनक माता-पिता के गुण मिले रहते हैं। .. यह विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य बात है कि क्लोनिंग में नर अथवा मादा की सामान्य दैहिक कोशिकाओं के गुणसूत्र के द्वारा संतान उत्पन्न की जाती है जो कि स्वाभाविक रूप से अपने दाता (जनक) जैसी ही होती है। अविकसित जीवों, पेड़-पौधों आदि में तो यह प्रक्रिया कायिक प्रजनन, अलैंगिक प्रजनन आदि के रूप में प्राकृतिक रूप से पाई ही जाती है। परंतु आधुनिक वैज्ञानिकों ने विकसित जीवों, चूहों, भेड़ों एवं अब मनुष्यों तक को इस विधि से उत्पन्न करना शुरू कर दिया है। यह विषय विज्ञान के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है और क्लोनिंग के संबंध के प्रयोग आज विश्व में प्रत्येक स्थान पर हो रहे हैं। भारत भी इस क्षेत्र में पिछड़ा हुआ नहीं है। दाता-क्लोन . क्लोनिंग की क्रिया में प्राणी की सामान्य कोशिकाओं को ही विभिन्न वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के द्वारा एक पूर्ण जीव में विकसित किया जाता है अतः