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द्रव्य मीमांसा और दर्शन ]
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जानवरों की तरह उनमें कोई स्नायु (नर्व) नहीं होते लेकिन एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि जब टमाटर के पत्ते को कीड़े काटते हैं, तो पत्ता तुरंत बिजली के चेतावनी-संदेश पूरे पौधे में भेज देता है। पौधे बिजली के संदेश उसी तरह प्रयोग करते हैं जैसे स्नायु-कोशिकाओं में पशु-पक्षी करते हैं। जानवरों में संदेश तरंगे बहुत तेजी से मस्तिष्क और शरीर के बीच आती-जाती हैं, जबकि पौधों में संदेश बिल्कुल कछुआ चाल से चलते हैं। वनस्पति विज्ञान की शाखा, आज विज्ञान की विकसित शाखा है जिसने वनस्पति में जीवन स्वीकार किया है। . दो प्रकार की वनस्पति
जैन दृष्टि से वनस्पति दो प्रकार की है - > साधारण वनस्पति » प्रत्येक वनस्पति
जैन आगमिक ज्ञान के अनुसार साधारण वनस्पति के जीव इतने सूक्ष्म है कि एक सूई के अग्रभाग जितने से छोटे शरीर में अनन्त जीव समा जाते हैं। यह प्रत्यक्ष नहीं होने के कारण आस्थामय विषय रहा था लेकिन वर्तमान युग में विज्ञान ने सूक्ष्म के क्षेत्र में विशेष जानकारी प्राप्त की है। रसायन शास्त्र के पंडित कहते है कि आल्पीन के सिरे के बराबर बर्फ के टुकड़े में 1018 अणु है। इसी प्रकार सुई की नोक टिके उतने 'लक्ष्यपाक', तेल में एक
लाख औषधियो का अस्तित्व होता है। ये सूक्ष्मता के उदाहरण साधारण • ' वनस्पति के जीवों की सूक्ष्मता को संदेह से परे करते है। - जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान के साथ जीव की जैन धारणा से तुलना कर आचार्य महाप्रज्ञ ने नए चिन्तन के द्वार खोले हैं। (v) विकास वाद
विज्ञान का सृष्टि-क्रम असत् से सत् है। यह विश्व कब, क्यों और कैसे उत्पन्न हुआ इसका आनुमानिक कल्पनाओं के अतिरिक्त कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता। डार्विन के अनुसार यह विश्व क्रमशः विकास की ओर बढ़ रहा है। वैज्ञानिक विकासवाद बाह्य स्थितियों का आकलन है। डार्विन ने सिर्फ शारीरिक विवर्तन के आधार पर क्रम-विकास का सिद्धान्त स्थिर किया। वैज्ञानिकों का विकासवाद का प्रेरक अतीत काल है। जैन दृष्टि से यह निश्चित सत्य नही है।