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________________ . 128] [ जैन विद्या और विज्ञान » पृथ्वीकाय » अप्काय > तेजस्काय » वायुकाय > वनस्पतिकाय वनस्पति का चैतन्य, विज्ञान जगत में मान्य हो चुका है। अन्य स्थावर जीवों में प्राण होने संबंधी कुछ परीक्षण हुवे हैं। बेतार की तरंगो के बारे में (Wireless Waves) अन्वेषण करते हुए जगदीश चन्द्र बसु को यह अनुभव हुआ कि धातुओं के परमाणु पर भी अधिक दबाव डालने से रूकावट आती है और उन्हें फिर उत्तेजित करने पर वह दूर हो जाती है। उन्होने सूक्ष्म छानबीन के बाद बताया कि धान्य आदि पदार्थ भी थकते हैं, चंचल होते हैं, विष से मुरझाते हैं, नशे से मस्त होते हैं और मरते हैं। अन्त में उन्होंने प्रमाणित किया कि संसार के सभी पदार्थ सचेतन है। ___आचार्य महाप्रज्ञ ने उपर्युक्त प्रकरण को जैन मान्यता के लिए सहयोगी माना है। वनस्पति की सचेतनता सिद्ध करते हुए उसकी मनुष्य के साथ तुलना की गई है। जैसे मनुष्य शरीर जाति (जन्म) धर्मक है, वैसे वनस्पति भी जाति-धर्मक है। जैसे मनुष्य सचेतन है, वैसे वनस्पति भी। जैसे मनुष्य आहार खाता है, बालक, युवा और वृद्ध अवस्था को पार करता है, छेदन करने से मलिन होता है,रोग सम्पर्क से प्रभावित होता है वैसे ही वनस्पति को संवेदन होता है। वनस्पति के जीवों मे अव्यक्त रूप से संज्ञाएं होती है जिसका विवेचन विज्ञान में होने लगा हैं। जगदीश चन्द्र बोस के वैज्ञानिक प्रयोग __आचार्य जगदीश चन्द्र बोस ने सिद्ध किया था कि वनस्पति भी जीव है और मनुष्य तथा पशु-पक्षियों के समान वे भी खुश होते हैं और विषाद में मुरझा जाते हैं। मधुर स्वर सुनकर वृक्षों के "प्रोटोप्लाजम" के कोष में स्थित "कोरोप्लाट" विचलित और गतिमान हो उठता है। प्रोफेसर वोगल ने प्रयोगों में पाया कि पौधे की आन्तरिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों को कंपन के रूप में अंकित किया जा सकता है। उसने पाया कि यंत्र ने कागज पर एक ग्राफ खींचा है। वह इस नतीजे पर पहुंचा कि वनस्पति में संवेदनशीलता होती है। पेड़-पौधे सर्दी-गर्मी महसूस करते हैं, उन्हें प्यास भी लगती है। अब तक तो यही सोचा जाता था कि पेड-पौधों में कोई संवेदन तंत्र नहीं होता.क्योंकि
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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