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________________ 124] [जैन विद्या और विज्ञान सकते हैं। जैन दृष्टि से आत्मा का लक्षण चैतन्य है, उपयोग है। आत्मा अभौतिक है लेकिन संसारी आत्मा भौतिक कर्मों से बंधी है। इसे यों भी कहा जाता है कि जीव स्वरूप से अमूर्त और चैतन्यमय है, किंतु प्रत्येक संसारी जीव शरीरधारी है। शरीरधारी होने के कारण वह मूर्त है, उसका चैतन्य अदृश्य है। कर्म मुक्त होने पर आत्मा, सिद्ध हो जाती है। आत्म तत्व का दार्शनिक विवेचन जैन साहित्य में उपलब्ध है। प्राचीन दार्शनिक प्रश्न एक प्राचीन प्रश्न है कि आत्मा और कर्म का संबंध कैसे हो सकता है, जब कि आत्मा चेतन और अरूप है और कर्म-शरीर अचेतन और सरूप। इसके उत्तर में कहा गया है कि सूक्ष्म शरीर और आत्मा का संबंध अपश्चानुपूर्वी है। अपश्चानुपूर्वी उसे कहा जाता है जहाँ पहले पीछे का कोई विभाग नहीं होतापौर्वापर्य नहीं निकाला जा सकता। तात्पर्य यह हुआ कि उनका संबंध अनादि है। आचार्य महाप्रज्ञ ने एक अन्य स्पष्टकीरण में कहा है कि 'अमूर्त के साथ मूर्त का संबंध नहीं हो सकता। वे कहते हैं कि यह तर्क प्रस्तुत करना उचित प्रतीत होता है, कि अमूर्त आत्मा का मूर्त शरीर के साथ संबंध की स्थिति जैन दर्शन के सामने उलझन भरी है किन्तु वस्तुवृत्या वह उससे भिन्न है। जैन दृष्टि के अनुसार अरूप का रूप-प्रणयन नहीं हो सकता लेकिन संसारी आत्माएं अरूप नहीं होती। आत्मा का विशुद्ध रूप अमूर्त होता है किन्तु संसार दशा में उसकी प्राप्ति नहीं होती। उनकी अरूप-स्थिति मुक्त दशा में बनती है। उसके बाद उनका सरूप के घात-प्रत्याघातों से कोई लगााव नहीं होता। . विविध प्रयोग आत्मा, मन, मस्तिष्क और इन्द्रिय के संबंध में विज्ञान मत को प्रस्तुत करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने विविध प्रयोगों का उल्लेख किया है कि - (i) मस्तिष्क और आत्मा (अ) वैज्ञानिक मत - बहुत से पश्चिमी वैज्ञानिक आत्मा को मन से अलग नहीं मानते। उनकी दृष्टि में मन और मस्तिष्क क्रिया एक है। दूसरे शब्दों में मन और मस्तिष्क पर्यायवाची शब्द हैं। पावलोफ ने इसका समर्थन किया है कि स्मृति मस्तिष्क (सेरेब्रम) के करोड़ों सेलों (cells) की क्रिया है। बर्गसां जिस युक्ति के बल पर आत्मा . के अस्तित्व की आवश्यकता अनुभव करता है, उसके मूलभूत तथ्य स्मृति को ‘पावलोफ' मस्तिष्क के सेलों (cells) की क्रिया बतलाता है। फोटो के निगेटिव प्लेट में जिस प्रकार प्रतिबिम्ब
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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