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[ जैन विद्या और विज्ञान
यह अटल नियम है। उन्होंने बताया – गूंगा व्यक्ति इसलिए बहरा होता है कि उसकी जीभ विकृत है, वह सुन नहीं पाती। कान ठीक हैं, वे ध्वनि को ग्रहण कर जीभ तक पहंचा देते हैं, किंत जीभ पकड़ नहीं पाती, इसलिए आदमी सुन नहीं पाता। इसलिए जो गूंगा है, उसका बहरा होना जरूरी है और जो गूंगा नहीं है, जीभ में सुनने की शक्ति है, पर जिसका कान विकृत हो जाता है, वह ध्वनि को जीभ तक पहुंच नहीं पाता, इसलिए वह सुन नहीं । सकता।
आज के शरीर-शास्त्रियों ने भी यह माना है कि सुनने की क्षमता जितनी दांतों की हड्डियों में है, उतनी कान में नहीं है। कान की अपेक्षा दांत अच्छा सुन सकते हैं। आज तो यह भी प्रयत्न हो रहा है कि विश्व में कोई बहरा . नहीं रहे। दांत की हड्डियों पर एक यंत्र फिट कर दिया जाएगा और बहरा आदमी सुनने लग जाएगा। जीभ सुन सकती है। दांत सुन सकते हैं यह बहुत निकट की बात है। शरीर का 'करण' बनना
जैनाचार्यों ने एक यौगिक विभूति का उल्लेख किया है। उसकी संज्ञा है – “संभिन्नस्त्रोतोलब्धि' । यह एक ऐसी विभूति है, जिससे सारा शरीर 'करण' बन जाता है, इन्द्रिय बन जाता है। फिर यह स्थूल विभाग की बात व्यर्थ हो जाती है कि आंख ही देख सकती है, कान ही सुन सकता है आदि-आदि। इस विभूति के प्रकट होने पर शरीर का प्रत्येक अवयव पांचों इन्द्रियों का काम करने लग जाता है। समूचा शरीर देख सकता है, समूचा शरीर सुन सकता है। कुछ लड़कियां हैं जो अंगुलियों से पढ़ सकती हैं। आंख का काम अंगुलियों से करती हैं। यह तथ्य अनेक वैज्ञानिकों को आश्चर्य में डाले हुए है। प्रत्यक्ष को नकार नहीं सकते। वे यह नहीं कह सकते कि अंगुलियों से नहीं पढ़ा जा सकता। किंतु क्यों और कैसे पढ़ा जाता है - इसकी व्याख्या नहीं कर सकते। यह विषय अभी विज्ञान से परे है। वैज्ञानिक इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं। किंतु यह तथ्य हजारों वर्ष पूर्व स्वीकृत हो चुका है कि समूचा शरीर हर इन्द्रिय का काम कर सकता है। एक इन्द्रिय से पांचों इन्द्रियों का काम लिया जा सकता है या समूचे शरीर से किसी भी इन्द्रिय का काम लिया जा सकता है। ___ इससे लेखक की यह थ्योरी (धारणा) पुष्ट होती है कि वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के गुणांशों में परस्पर स्थानान्तरण होना सही प्रतीत होता है।