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द्रव्य मीमांसा और दर्शन ]
(vii) पुद्गल की काल- स्थिति
पुद्गल की काल स्थिति के बारे मे बताया गया है कि अपने स्वरूप में पुद्गल यदि उसी रूप में रहे तो जघन्यतः (minimum) एक समय और उत्कृष्टतः (maximum) असंख्य काल तक रह सकता है। इसी आगम वाक्य के अनुसार आचार्य महाप्रज्ञ का मानना है कि भगवान महावीर की वाणी के अंश आज भी कहीं सुरक्षित रूप में उपलब्ध हो सकते हैं क्योंकि शब्द पुद्गल हैं और पुद्गल अपने स्वरूप में असंख्य काल तक रह सकता है। वैज्ञानिक भी ऐसे उपकरणों की खोज में व्यस्त हैं जिसकी सहायता से आकाश में व्याप्त शब्दों में से प्राचीन संगीत व ध्वनियों को ढूंढ पाने व उसका पुनः निर्माण करने में सफल हो सके ।
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(viii) परमाणु की अतीन्द्रियता
परमाणु इन्द्रिय का विषय नही है अतः वह अतीन्द्रिय है। परमाणु मूर्त्त होते हुए भी दृष्टिगोचर नहीं होता क्योंकि वह सूक्ष्म है। केवल पारमार्थिक प्रत्यक्ष से देखा जा सकता है।
• परमाणु के अतिरिक्त भी अनेक चतुःस्पर्शी स्कन्ध है जिनको देखा नही जा सकता। इस संबंध में वैज्ञानिक निष्कर्ष हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। विज्ञान के अनुसार हम उसी पदार्थ को देख पाते हैं जिसका आकार दृश्यमान किरणों (Visible rays) की तरंग - लम्बाई से बड़ा होता है। परमाणु का आकार, दृश्यमान किरणों की तरंग लम्बाई से छोटा है अतः हम इसे कभी नहीं देख पायेंगे |
"Since the wavelength of light is much larger than the size of an atom we can not hope to "look" at the parts of an atom in the ordinary way.
हम जानते हैं कि बिल्ली जैसे कुछ जानवर रात के अंधेरे में भी देख लेते हैं, ऐसा क्यों होता है ? अंधेरे में दृश्यमान किरणें नहीं होती किन्तु दृश्यमान किरणों से कम तरंग लम्बाई की अल्ट्रा-वायलेट किरणें होती हैं। इन किरणों को बिल्ली की आँख ग्रहण कर लेती है और उससे देख पाती है । अतः इन्द्रिय संवेदन में तरंगो की आवृति संख्या का महत्त्वपूर्ण योगदान है ।
पाठकों के लिए दृश्य किरणों की तरंग दैर्ध्य को जानना महत्त्वपूर्ण है। हम वे ही पदार्थ देख पाते हैं जिनका आकार दृश्य किरणों की तरंग दैर्ध्य से बड़ा होता है।