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________________ द्रव्यं मीमांसा और दर्शन ] [109 निष्कर्ष संभव प्रतीत नहीं होता। अतः यह संभावित है कि जैन दर्शन में आकाश के तीन आयामों के साथ में चौथा आयाम को स्वीकार किया है, जो ब्रह्माण्ड में स्थिर है। वह काल ही होना चाहिए। काल की वैज्ञानिक अवधारणाएं ... आधुनिक विज्ञान के अनुसार 'वास्तविक समय' निम्नलिखित तीन में से किसी भी एक दिशा-निर्देश से समझा जा सकता है। (i) उष्मागतिकी दिशा अर्थात् एन्ट्रापी (अव्यवस्था के कारण बढ़ता हुआ ताप) बढ़ रही है वही समय की दिशा है। (ii) मानसिक दिशा अर्थात् अतीत से भविष्य की ओर बढ़ती हुई दिशा, काल की दिशा है। (iii) ब्रह्माण्डीय समय की दिशा वह है जिधर ब्रह्माण्ड विस्तार ले रहा ये तीनों परिभाषाएं काल के तीर को बढ़ाता हुआ बता रही है। ऐसा तर्क दिया जा सकता है कि उपर्युक्त परिभाषाओं में अगर एन्ट्रॉपी घटने लगे या ब्रह्माण्ड संकुचित होने लगे तो दिशा क्या होगी? इसका सीधा उत्तर यही हो सकता है कि इसमें काल उल्टा चलना शुरू करेगा अर्थात् मृत्यु पहले होगी और जन्म बाद में होगा। जैसाकि पुर्नजन्म के समय होता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने पुर्नजन्म की व्यवस्था में काल की वर्तुलीय दिशा कही है। जहां काल लौटता है। विज्ञान की दृष्टि में, काल केवल रेखाकार गति कर रहा है, एक ही दिशा में बढ़ रहा है। यहाँ काल से अवधारणा में जैन दृष्टि और विज्ञान में समानता नहीं है, लेकिन इस संबंध में प्रोफेसर हांकिग का मत है कि काल्पनिक समय जो दिशा में बंधा नहीं है, उस काल को पॉजीटिव (+) तथा नेगेटिव (-) किया जा सकता है। अगर हांकिग की गणितीय धारणा प्रकट हो जाती है तो भूत और भविष्य को जाना जा सकेगा। - ब' तीन आयाम (Three dimension) घन (Cube)
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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