________________
110]
.
[ जैन विद्या और विज्ञान
पुद्गल (Matter)
आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार विज्ञान जिसको मैटर कहता है, उसे जैन दर्शन में पुद्गल संज्ञा दी है। पुद्गल का अर्थ है मूर्तिक द्रव्य । मूर्त वह होता है जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण होता है, संस्थान होता है। पुद्गल अखण्ड द्रव्य नहीं है। उसका सबसे छोटा रूप एक परमाणु है और सबसे बड़ा रूप है विश्वव्यापी अचित्त महास्कन्ध । अचित्त महास्कन्ध जैनों का पारिभाषिक शब्द है अतः पाठकगण के लिए इसका विश्लेषण प्रेषित है। (i) अचित्त महास्कन्ध
अचित्त महास्कन्ध पुद्गलों का एक लोक-व्यापी स्वरूप है जिसका उल्लेख केवली समुद्घात के वर्णन में स्पष्टतया मिलता है। केवली-समुद्घात भी जैनों का पारिभाषिक शब्द है। वे केवल-ज्ञानी जीव जिनका आयुष्य कम रह जाता है लेकिन अन्य कर्म-पुद्गलों की स्थिति अधिक रह जाती है तब उनकी आत्मा का अपना विराट स्वरूप प्रकट होता है। लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश (अंश) में आत्मा का प्रत्येक प्रदेश अवगाहित हो जाता है और आत्मा के प्रत्येक प्रदेश से पदार्थमय-कर्मों से मुक्ति होती है। आत्मा से छूटते हुए कर्म-पुद्गल परस्पर में एकाकार होते हुए अचित्त महास्कन्ध का निर्माण करते हैं। इस प्रकार आत्मा का लोक-व्यापी स्वंरूप तथा पुद्गल-पदार्थ का लोकव्यापी स्वरूप एक ही प्रक्रिया में प्रकट होता है। यह जैन दर्शन की मौलिकता है कि इसमें जीव और अजीव अर्थात् आत्मा और पुद्गल के विराट स्वरूप को समान महत्व दिया है। अन्य दर्शनों में लोक-व्यापी आत्मा, को परमात्मा स्वीकार किया है लेकिन जैन दर्शन के अनुसार आत्मा, केवली समदघात के समय लोक-व्यापी होकर. पन: सिमट कर अपने शरीर आकार में प्रवेश कर जाती है और अगले समय में सिद्ध स्थान को प्रस्थान करती है। यह जैन दर्शन की विशेषता है कि इसमें अनन्त व्यक्तिगत आत्माओं के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार किया है। आचार्य महाप्रज्ञ ने केवली समुद्घात की प्रक्रिया का वर्णन किया है उसका उल्लेख गति प्रकरण के अस्पृशद् गति की व्याख्या में किया गया है। उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि केवली समुद्घात के समय अचित्त महास्कन्ध का निर्माण होता है, किया नहीं जाता