________________
द्रव्य मीमांसा और दर्शन]
[ 107
• दिशाओं की ज्यामिति
___आइंस्टीन ने देश और काल को समन्वित रूप से स्वीकार किया है। यह माना जाता रहा है कि इस संबंध का प्रमाण जैन दर्शन में नहीं है। इसके एक कारण का हमने उपर अध्ययन किया है कि आकाश के अतिरिक्त धर्म और अधर्म द्रव्यों के होने के कारण केवल आकाश-काल की युति का प्रत्यक्ष वर्णन नहीं हुआ है। इस तथ्य की गवेषणा के लिए हम दिशाओं का ज्यामिती के आधार से जानने का प्रयत्न करेंगे। 'आकाश और दिशाएं' के अध्याय में हमने दिशाओं की समस्या पर विचार किया है। काल के सन्दर्भ में हम दिशाओं के वर्णन को दोहरायेंगे, जिससे हम काल और दिशा के बीच सम्बन्ध स्थापित कर सकें। - हम पाते हैं कि आचारांग सूत्र में पुनर्जन्म की स्थापना के वर्णन में दिशाओं का उल्लेख हुआ है। आचारांग नियुक्ति में इसका विस्तार से वर्णन हुआ है। उसमें चार महादिशाओं अर्थात् उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम बताई गई है जिन्हें हम ज्यामिती की भाषा में त्रिआयामी आकाश के दो आयाम मानते हैं क्योंकि उत्तर-दक्षिण दोनों को मिलाने पर एक आयाम (अक्ष) और पूर्वपश्चिम दोनों को मिलाने पर एक और आयाम (अक्ष) बन जाएगा। ये दो आयाम लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई में कोई दो हो सकते हैं। इन महादिशाओं के वर्णन के बाद ऊर्ध्व और अधों दो दिशाएं और बताई गई हैं जिसे हम आकाश का तीसरा आयाम मानते रहे हैं इसकी मीमांसा आवश्यक है, क्योंकि रुचक-प्रदेशों से निकलने वाली इन महादिशाओं के वर्णन में बताया है कि.महादिशाओं का प्रारम्भ आकाश के दो प्रदेशों से शुरू होता है और उनमें दो-दो प्रदेशों की वृद्धि होते-होते वे असंख्य प्रदेशात्मक बन जाती है। लेकिन ऊर्ध्व और अधो दिशा का प्रारम्भ चार प्रदेशों से होता है, फिर उनमें वृद्धि नहीं होती। इससे स्पष्ट है कि ऊर्ध्व और अधो दिशा से बनने वाला आयाम (अक्ष) महादिशाओं से बनने वाले दो आयामों से भिन्न है। जबकि त्रिआयामी आकाश में तीनों आयामों में किसी प्रकार का अन्तर नहीं होता।
___ आगम साहित्य में छह ही दिशाओं को एक समान मानने के संबंध में यह कहा गया है कि इन छह ही दिशाओं में जीव की गति होती है। गति के अतिरिक्त जीव की अन्य प्रक्रियाएं भी होती हैं। इस संदर्भ में हमें जानना है कि अगर ऊर्ध्व और अधो दिशा केवल चार प्रदेश वाली ही है तो असंख्य प्रदेशी जीव उसमें कैसे गति कर सकेंगे? ऊर्ध्व और अधो दिशा से बनने वाले आयाम को तीसरा आयाम न माने तो फिर आकाश का तीसरा आयाम कैसे निर्धारित होगा?