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________________ द्रव्य मीमांसा और दर्शन ] धारणा के बहुत निकट है । सर्वज्ञता की सम्भावना केवल जब ही बनती है जब • आत्मा में क्षायिक भाव उत्पन्न होता है। क्षायिक भाव में मुक्त हुए कर्म पुनः आत्मा से नहीं बंधते। यह महत्त्वपूर्ण विचार है । समय [105 काल की सूक्ष्मतम इकाई को 'एक समय कहा है जो अविभाज्य है। व्यावहारिक दृष्टि से यह जानना चाहिए कि एक बार पलक झपकने में ऐसे असंख्य समय व्यतीत हो जाते हैं। समय के बाद आगे की समय मापक इकाई को आवलिका कहा है जो असंख्य समयों के समान है। यह आश्चर्य की बात है कि समय और आवलिका के बीच काल-माप की कोई इकाई नहीं है और इन दोनों के बीच में असंख्यात का गुणांक है। इसका क्या रहस्य होना चाहिए ? साधारण रूप में यह माना जा सकता है कि सूक्ष्म जगत के लिए 'समय' को इकाई माना गया है और स्थूल जगत में 'आवलिका को छोटी से छोटी इकाई माना है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि कोई भी स्थूल कार्य 'समय' की इकाई में संभव नहीं है। उसे कम से कम असंख्य समय लगने चाहिए। यह भी कहा जा सकता है कि निश्चय नय के अनुसार 'समय' काल की इकाई है और व्यवहार नय के अनुसार 'आवलिका' काल की सूक्ष्मतम इकाई है। गणितीय दृष्टि से एक 'समय' इतना सूक्ष्म है कि वह काल-माप का अंश नहीं माना जा सकता। इस दृष्टि से 'समय' को जीव • और अजीव की सूक्ष्म पर्याय या परिवर्तन मानना उचित है । व्यवहार में काल को द्रव्य मानने से इन्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि जगत की सभी क्रियाएं काल-समय पर आधारित है। 'समय' के दो अर्थ इस विश्लेषण से हम निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि जैन दर्शन में 'समय' को दो अर्थों में लिया गया है (i) काल की सूक्ष्मतम इकाई । (ii) काल की शून्य अवस्था, जब वह समस्त आकाश में विद्यमान रहता है। जब समय शून्य हो जाता है तो पदार्थ दो स्थानों पर -या अनेक स्थानों पर एक साथ एक समय उपस्थित रह सकता है। जैन साहित्य के अनेक प्रकरण 'शून्य समय' की परिभाषा के अन्तर्गत 'आते हैं। अस्पृशद गति जिसे आकाश-काल निरपेक्ष कहा गया है वहां भी
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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