________________
द्रव्य मीमांसा और दर्शन ]
[93
निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय द्रव्यों की मान्यता ने जैन कॉस्मोलॉजी की लोक-अलोक की अवधारणा को पूर्णता प्रदान की है। वैज्ञानिक अभी तक ब्रह्माण्ड की सीमा के संबंध में अन्तिम सत्य तक नहीं पहुंच पाए हैं। गति और स्थिति
उपर्युक्त विवेचन में केवल गति तत्त्व का उल्लेख हुआ है जब कि जैन दर्शन में गति और स्थिति के दोनों द्रव्य आकाश में समान रूप से व्याप्त हैं। आचार्य महाप्रज्ञ लिखते हैं कि गति और स्थिति दोनों सापेक्ष हैं। एक के अस्तित्व से दूसरे का अस्तित्व अत्यन्त अपेक्षित है। विज्ञान से तुलना करने पर हम पाते हैं कि भौतिक शास्त्र में कार्य करने की क्षमता को शक्ति कहा है। यह दो प्रकार की होती है :
(1) गति शक्ति (2)- अधिष्ठान-शक्ति।
पदार्थ में गति के कारण जो शक्ति आ जाती है उसे गति-शक्ति कहते हैं तथा पदार्थ में उसकी स्थिति, विन्यास के कारण जो शक्ति होती है उसे अधिष्ठान शक्ति कहते हैं। यद्यपि विज्ञान ने गति और स्थिति के नियामक तत्त्व नहीं माने हैं क्योंकि 'इथर' तत्त्व को अस्वीकृत कर दिया गया है किंतु जैन दर्शन में धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय द्रव्यों को गति और स्थिति का नियामक माना है। अतः यह माना जा सकता है कि पदार्थ की गतिशक्ति का सम्बन्ध धर्मास्तिकाय से है और अधिष्ठान-शक्ति का सम्बन्ध अधर्मास्तिकाय से है। (vii) बिग-बैंग - सृष्टि की उत्पत्ति
विज्ञान ने सृष्टि का आरम्भ बिग-बैंग (Big-Bang) अर्थात् एक धमाके से माना और बिग क्रंच (Big Crunch) से सृष्टि का अन्त स्वीकार किया है किंतु वैज्ञानिकों को यह भी संदेह है कि अगर बिग-बैंग की अवधारणा सही है तो उससे पूर्व आकाश और काल की क्या सत्ता थी? ऐसे प्रश्न इस तथ्य के साक्षी है कि सृष्टि के शाश्वत प्रश्नों के संबंध में वैज्ञानिक सोच और दार्शनिक सोच निकट आ रही है। आज वैज्ञानिक जीवन और जगत के उन प्रश्नों का उत्तर दूढ़ रहे हैं जिनका चिंतन दार्शनिक किया करते थे।
डॉ. हॉकिंग का कहना है कि सैद्धान्तिक भौतिक शास्त्र के नियम इस आधार पर बने हैं कि आकाश काल स्निग्ध तथा चौरस हैं अतः बिग-बैंग की