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[जैन विद्या और विज्ञान
(i) सापेक्षवाद (Relativity) जो स्थूल द्रव्य की भौतिकी समझाता
(ii) क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) जो सूक्ष्म द्रव्य
को परिभाषित करता है। ब्रह्माण्ड संबंधी कुछ निरीक्षणों में गुरुत्वाकर्षण के नियम सत्य प्रतीत . होते हैं। जैसे ग्रहों की कक्षा, ग्रहण आदि। जबकि तारों की संरचना, प्रकाश . की गति, सूक्ष्मतम कणों आदि को क्वांटम यांत्रिकी से समझाया जा सकता है। अभी तक ये दोनों सिद्धान्त परस्पर में विरोधी हैं तथा ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ और अन्त को नहीं समझा पाए हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि बिग-बैंग के पहले समय का क्या स्वभाव था ? अनेक प्रश्न अभी निरुत्तरित हैं। आकाश-काल की युति
__उपर्युक्त इन दोनों सिद्धान्तों के समन्वय से एक नई स्थिति उत्पन्न हुई है जो पहले कभी नहीं थी। इस स्थिति में आकाश काल की युति चार आयामी हो जाती है जो आकाश काल को सीमित कर देती है। ऐसे में यह जानना अत्यन्त रुचिकर है कि जैन दर्शन ने इन प्रश्नों का क्या उत्तर दिया है? इस संबंध में सर्वप्रथम हम लोक-अलोक के विभाजन तत्त्व की धारणा को पाठकों के लिए प्रस्तुत करेंगे। (i) लोक-अलोक का विभाजक तत्त्व
जैन दर्शन में लोक-अलोक की मान्यता सर्वथा मौलिक है। लोक-अलोक के विभाजक तत्त्व की मीमांसा में कहा गया है कि धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय ये दो द्रव्य आकाश को दो भागों में बांटते हैं अर्थात् जिस आकाश खण्ड में ये द्रव्य होते हैं, वहीं लोक की प्राकृतिक सीमा है। शेष आकाश अलोक है। आचार्य महाप्रज्ञ ने इसकी पुष्टि में अन्य द्रव्यों की विवेचना करते हुए बताया है कि आकाश, काल, जीव और पुद्गल लोक-अलोक के विभाजन के आधार नहीं बन सकते। इसके निम्न कारण प्रस्तुत किये हैं - (1) आकाश स्वयं विभाज्यमान है, इसलिए वह विभाजन का हेतु नहीं
बन सकता। (2) काल परिणमन का हेतु है। उसमें आकाश को दिग्रुप करने
की क्षमता नहीं है। (3) काल वास्तविक तत्त्व नहीं है। यह विभाजक तत्त्व नहीं बन
सकता।