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द्रव्य मीमांसा और दर्शन ]
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लोकवाद
जैन दृष्टि से ब्रह्माण्ड (लोक) छ: द्रव्यों में वर्गीकृत है। ये द्रव्य हैं: - __ 1. धर्मास्तिकाय
2. अधर्मास्तिकाय . 3. आकाशास्तिकाय
4. पुद्गलास्तिकाय 5. जीवास्तिकाय 6. काल
सामान्य रूप से इन्हें धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव कहा जाता है। इन छ: द्रव्यों की सहस्थिति लोक है। जैन साहित्य में ब्रह्माण्ड
को लोक (विश्व) कहा है। इस लोक के बाहर केवल अनन्त आकाश है, . उसे अलोकं कहा है। जैनों ने सर्वप्रथम लोक-अलोक को जाना फिर अन्य द्रव्यों की मीमांसा की। लोक का आकार, उसके मध्य बिन्दु (रुचक प्रदेश), लोक की सीमाएँ, लोक-अलोक की व्यवस्था, अस्तित्व के मौलिक द्रव्य आदि संबंधित तथ्यों पर विमर्श कर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यह ब्रह्माण्ड किसी के द्वारा निर्मित नहीं है और न ही इसका कभी अंत होने वाला है। जैन दृष्टि से विश्व-संरचना, ज्यामिती के सार्वभौम नियमों का पालन करती हुई शाश्वत तथा स्थायी है यद्यपि इसमें स्थित द्रव्य परिवर्तनशील है।
वैज्ञानिक आइंस्टीन और हाकिंग के मन्तव्य -: आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार सृष्टि और सृष्टि संचालन के लिए जैन दर्शन ने किसी ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार नहीं किया इसलिए उन्हें सार्वभौम और सामयिक नियमों की खोज की। जैन दृष्टि के समान ही आधुनिक वैज्ञानिकों ने इस ब्रह्माण्ड की संरचना में ईश्वर को नहीं माना है। आइंस्टीन का यह वाक्य जैन दृष्टि से अत्यन्त मार्मिक है कि 'ईश्वर के लिए कुछ भी करने को नहीं बचा है क्योंकि प्रकृति अपने नियमों से कार्य कर रही है। वर्तमान के प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री प्रोफेसर हाकिंग के अनुसार भी यह सृष्टि अनादि अनन्त है। वर्तमान में विज्ञान के क्षेत्र में ऐस्ट्रो-भौतिकी (Astro-physics) का विषय अत्यन्त विकसित हो रहा है। विज्ञान दीर्घ से दीर्घतम और सूक्ष्म से सूक्ष्मतम की खोज में लगा है। एक ओर जहां बृहदतम