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________________ 84] [ जैन विद्या और विज्ञान E = mc2 E = एनर्जी (Energy) m = द्रव्यमान (mass)) c= प्रकाश की गति (Velocity of Light) उपर्युक्त समीकरण के अनुसार अगर एक पौंड कोयला लें और उसकी द्रव्य संहति को शक्ति में बदलें तो दो अरब किलोवाट की विद्युत शक्ति प्राप्त हो सकती है। जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य में अनन्त शक्ति है। वह द्रव्य चाहे जीव हो या पुद्गल । काल की अनन्त धारा में वही द्रव्य अपना अस्तित्व रख सकता है जिसमें अनन्त शक्ति होती है। वह शक्ति परिणमन के द्वारा प्रकट होती। रहती है। आज के वैज्ञानिक जगत में जितने प्रयोग हो रहे हैं, उनका क्षेत्र पौद्गलिक है। पौद्गलिक वस्तु को उस स्थिति में ले जाया जा सकता है, जहाँ उसकी स्थूलता समाप्त हो जाए, उसका द्रव्यमान या द्रव्य-संहति समाप्त हो जाए और इसे शक्ति के रूप में बदल दिया जाए। जैन दर्शन ने द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन दो नयों से विश्व की व्याख्या की है तथा द्रव्य में होने वाले परिवर्तन को स्पष्ट किया है। आचार्य महाप्रज्ञ ने परिणामी नित्यत्ववाद और द्रव्याक्षरत्ववाद की व्याख्याओं में सामंजस्य प्रस्तुत कर, अपनी वैज्ञानिक सोच को उजागर किया है।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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