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________________ द्रव्य मीमांसा और दर्शन] [ 83 द्रव्याक्षरत्ववाद द्रव्याक्षरत्ववाद की स्थापना सन् 1789 में लिवाजिए (Lavoisier) नामक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने की थी। संक्षेप में इस सिद्धान्त का आशय यह है कि इस अनन्त विश्व में द्रव्य का परिणाम सदा समान रहता है, इसमें कोई न्यूनाधिकता नहीं होती। न किसी वर्तमान द्रव्य का सर्वथा नाश होता है और न किसी सर्वथा नए द्रव्य की उत्पत्ति होती है। साधारण दृष्टि से जिसे द्रव्य का नाश होना समझा जाता है, वह उसका रूपान्तरण में परिणमन मात्र है। उदाहरण के लिए कोयला जलकर राख हो जाता है, साधारणतः उसे नाश हो गया कहा जाता है। परन्तु वस्तुतः वह नष्ट नहीं होता, वायुमंडल के आक्सीजन अंश के साथ मिल कर कार्बोनिक एसिड गैस के रूप में परिवर्तित होता है। इसी प्रकार जहाँ कहीं कोई नवीन वस्तु उत्पन्न होती प्रतीत होती है, वह भी वस्तुतः किसी पूर्ववर्ती वस्तु का रूपान्तर मात्र है। लोहे पर जंग का 'लगना कोई नया द्रव्य उत्पन्न नहीं हुआ अपितु धातु की ऊपरी सतह, जल और वायुमंडल के आक्सीजन के संयोग से लोहे के आक्सीहाइड्रेट के रूप में परिणत हो गई। भौतिकवाद पदार्थों के गुणात्मक अन्तर को परिमाणात्मक अन्तर में बदल देता है। शक्ति परिमाण में परिवर्तन नहीं, गुण की अपेक्षा • परिवर्तनशील है। प्रकाश, तापमान, चुम्बकीय आकर्षण आदि का हास नहीं होता, सिर्फ एक दूसरे में परिवर्तित होते हैं। द्रव्य और शक्ति का परस्पर में रूपान्तरण पर्याय परिवर्तन के द्वारा वस्तुओं में बहुत सारी बातें घटित होती हैं। इसमें ऊर्जा की वृद्धि और हानि भी है। ऊर्जा परिणमन के द्वारा ही प्रकट होती है। आइंस्टीन ने इस सिद्वान्त का प्रतिपादन किया कि द्रव्य (matter) को शक्ति (energy) में और शक्ति को द्रव्य में बदला जा सकता है। इस द्रव्यमान, द्रव्य संहति और शक्ति के समीकरण के सिद्धान्त की व्याख्या परिणामी नित्यत्ववाद के द्वारा ही की जा सकती है। आइंस्टीन से पहले वैज्ञानिक जगत में यह माना जाता था कि द्रव्य को शक्ति में और शक्ति को द्रव्य में नहीं बदला जा सकता। दोनों स्वतन्त्र हैं। किन्तु आइंस्टीन के समय से यह सिद्वान्त बदल गया। यह माना जाने लगा कि द्रव्य और शक्ति ये दोनों भिन्न नहीं, किन्तु एक ही वस्तु के रूपान्तरण हैं। इस संबंध में आइंस्टीन का समीकरण उल्लेखनीय है।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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