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[ जैन विद्या और विज्ञान
वस्तु को भस्म किया जा सकता । इसी प्रकार बहुत दूर तक अनुग्रह भी किया जा सकता है। इसके द्वारा अनुग्रह और निग्रह दोनों किये जा सकते हैं।
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आचार्य महाप्रज्ञ का यह लेख "विद्युतः सचित है या अचित" । जैन आगमों के अनुसंधान कार्य पर आधारित हैं । आपकी अनुसंधान वृत्ति से ही इतने प्रमाणों से पुष्ट यह लेख प्रकाशित हुआ है। आपके ही शिष्य
मुनि महेंन्द्र कुमार जी ने 'क्या विद्युत् सचित्त तेंउकाय है?'
नामक पुस्तक में इस विषय को विस्तार से प्रेषित किया है इसमें विज्ञान सम्मत अनेक उदाहरण दिये हैं। सभी पाठक गण के लिए इसका अध्ययन उपयोगी हैं।
10. अस्वाध्याय
जैन परम्परा में अस्वाध्यायिक वातावरण में स्वाध्याय (आगम - अध्ययन) करने का निषेध है । इसे ज्ञान का अतिचार कहा है। इस निषेध के पीछे अनेक कारण रहे हैं। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार, शुभ-अशुभ मानने की प्रवृत्ति प्रायः सभी देशों में है। इनका उल्लेख करते हुए लिखा है कि प्रकृत्ति में अनेक प्रकार की विचित्र घटनाएँ घटित होती हैं। इन घटनाओं की अद्भुतता तथा ग्रह, उपग्रह और नक्षत्रों में होने वाले अस्वाभाविक परिवर्तनों को शुभ-अशुभ मानने की प्रवृत्ति समूचे संसार में रही है। इसके साथ-साथ विभिन्न प्रकार की वृष्टियों, आकाशगत अनेक दृश्यों एवं बिजली से सम्बन्धित घटनाओं से ही शुभ-अशुभ की कल्पनाएं होती हैं। .
ग्रीस तथा रोम में भूकम्प, रक्तवर्षा, पाषाणवर्षा तथा दुग्धवर्षा को अत्यन्त अशुभ माना गया है।
• जापान में भूकम्प, बाढ़ तथा आंधी को युद्ध का सूचक माना जाता रहा
है ।
बेबीलोन में वर्ष के प्रथम मास में नगर पर धूलि का गिरना तथा भूकम्प अशुभ माने जाते हैं ।
ईरान में मेघ गर्जन, बिजली की चमक तथा धूलि मेघों को अशुभ माना जाता है।
दक्षिण पूर्वी अफ्रीका में अनावृष्टि, करकावृष्टि को अशुभ का द्योतक
माना जाता रहा I