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________________ संग्रदणीसूत्र. समुज जे. व के वस्त्रोना जेटलां नाम , ते नामे छीप समुत्र जे. गंध के कूट प्रमुखने नामे, उत्पल ते कुमुद प्रमुख जे चंडविकासी कमलो तेमने नामे, तिलएय के तिलकने नामे, एटले वृततिलक कलशतिलकादिकने नामे, अथवा तिलकादिक वृद प्रमुखने नामे, पजम के० पद्म ते शतपत्र पुंगरिकादिक सूर्य विकाशी कमलने नामे, महा पद्मादि नवनिधिने नामे, कर्केतनादिक रत्नने नामे, अथवा चक्रवर्ति वासुदेवना रत्नने नामे, वासहर के वर्षधर जे हिमवंतादिक पर्वतने नामे, दह के० उहने नामे, गंगा प्रमुख ना के नदीने नामे, कलादिक विजयने नामे, वस्कार के० माल्यवंतादिक वृदस्कारने नामे, एटले वखारादिक पर्वतने नामे कप्प के सौधर्मादिक देवलोकने नामे, इंदा के० शक्रंमादिकने नामे. ॥१॥ देवकुरु उत्तरकुरुने नामे, तिर्यकलोकनेविषे मंदर के मेरुने नामे, इंसादिकोना आवासने नामे, कूडा के० कूटपर्वतने नामे, नकत्त के कृतिकादिक नदत्रने नामे, चंमा सूर्यनां जे नाम ले ते नामे, एम अन्नेवि के अन्य पण एवमाई के० ए पूर्वोक्त आदे देश्ने प्रशस्त नली वस्तुऊनां नाम जे जगत्मां बे. ॥ ॥ त. नामा के० ते नामे दीवुदहि के हीप अने समुनो डे, अने पूर्वे कह्या जे अरुणश्रादे करी त्रिप्रत्ययावतार हुँति के जे. एटले ए अर्थ जे अरुणादिकथी मांडीने कौंचसीम त्रण त्रण नामे करी त्रिपत्ययावतार कह्या डे. तेमज वली बीजा यानरणादिकने नामे जे द्वीप समुमो कह्या, तेमां पण एक एकने त्रिप्रत्ययावतार करी देखाडे जे. जेम हारछीप, हारसमुख, हारवरहीप, हारवरसमुख, हारवरावनासहीप, हारवरावनास समुज. एवीरीते नाम कहेवां. एम ते विपत्ययावतार त्यांलगे करवा, ज्यांलगे देवछीप थकी पहेलो सूर्यवराव जास हीप, सूर्यवरावनास समुख श्रने जंबुछीपनामे छीप असंख्याता, तथा लवणसमुन्नामे समुछ पण असंख्याता. एम जंबुद्वीप तथा लवणसमुष श्रादेदेश्ने असंख्यातो जे छीप अने समुज, पत्तेयते असं खिद्या के ते प्रत्येके असंख्याता असंख्याता समजवा. ॥ ३ ॥ एवा असंख्याताहीप समुजताण के तेनो अंतिम के बेबो जे सूरवरावनास जलही के० सूर्यवरावनास समुष बे, त्यांसीम त्रिपत्ययावतार करीए. तेवार पली वली सर्व तिला लोकने बेडे देवादिक पांच छीप श्रने ए छीपने नामेज देवादिक पांच समुख, ते प्रत्येके एकेका नामे , माटे एनो त्रिपत्ययावतार न थाय. अने ए श्रसंख्याता पण नथी. किंतु पांच नाम, द्वीप समुजनां एकेकांज में, एटले ए नामे बीजो कोहीप समुफ नथी, ए जावार्थ . ए पांचनां नाम कहे . एक देवदीप ने देवसमुफ, बीजो नागहीप ने नागसमुख,त्रीजो जदछीप अने जनसमुज, चोथो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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