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________________ ६४ संग्रहणीसूत्र. नूतछीप अने नूतसमुख, पांचमो स्वयंजुरमणछीपने स्वयंजुरमण समुज-ए पांचेनां नाम कह्यां. जेम आ जंबुद्धीपे जंबुवृद बे, सर्व रत्नमय जगती , ते पाठ योजन ऊंची बे. तेना विजय, विजयंत, जयंत ने अपराजित एवा चार नामे चार दरवाजाना देव . तेम बीजा जे असंख्याता जंबुनामे बीप, अने लवणनामे समुज, त्या सर्वत्र एज स्थिति जाणवी. ते जंबुद्वीपे था जंबुछीपना अणाढीया देवनी राजधानी बे. तेमज लवणसमुजना देवतानी ते लवणसमुखे राजधानी जे. एम बीजा छीप समुज्याश्री पण समजवू. ॥ ४ ॥ - ॥ हवे समस्त समुजोनां प्राणी तथा मत्सोनुं विशेष स्वरूप कहे .॥ वारुणिवर खीरवरो ॥ घयवर लवणोय हुँति निन्नरसा ॥ कालोय पुस्करो दहि॥ सयंजुरमणोय नदगरसा ॥५॥इस्कुरस सेस जलदी॥खवणे कालोय चरिम बहुमना ॥ पण सग दस जोयण सय ॥ तणु कमा थोव सेसेसु ॥ ६ ॥ - अर्थ-एक वारुणीवर समुज्नुं पाणी मदिरा सरखं, बीजा क्षीरसमुज्नुं पाणी ते त्रण नाग गौध अने चोथो नाग मिश्री, ए रीते मिश्रिमिश्रत दूध सरखं जाणवू. त्रीजा घृतवरसमुज्नुं पाणी गायना घृतथकी सुवादिष्ट, चोथा लवणसमुज्नुं लवण सरखं पाणी. ए चारे समुजनां पाणी ते निन्नरसा के जूदा जूदा स्वादनां हुंति के बे. एटले जेवू नाम तेवो परिणामे पाणीनो स्वाद जे. तथा एक कालोदधि, बीजो पुष्करवर, त्रीजो स्वयंजुरमण, ए त्रण उदहि के० समुज, तेनां पाणी खानाविक उदगरसा के मेघ जे वर्षाद तेना पाणी जेवा पालर पाणीनी माफक स्वादिष्ट बे. ॥ ५ ॥ श्रने सेस के बाकीना नंदीश्वरसमुज आदे देइने नूतसमुज पर्यंत सर्व समुजनां पाणी ते इकरस के० शेलमीना रस जेवां खादिष्ट बे. अहींयां तज, एलची, केसर अने मरी, ए चार जणश सरखे नागे लेश्ने तेनी साथे त्रणजाग अवटायां जे कुरस ते सरखं पाणी जाणवू. लवण, कालोदधि, अने चरिम के बेहो खयंजुरमण-ए त्रण समुजमा बहुमला के० घणा जातना मठ कछपादिक माबलांनी जाति जे; तेना पणसय के पांचवें अंने सग के सातसें दससय के एक हजार जोयण के० योजननां तणु के शरीर ले जेनां, एवा मठो बे. ते कमा के अनुक्रमे श्रावी रीते कडेवा. तेमां लवणसमुखमा उत्कृष्टा पांचसे योजनना शरीरवाला . कालोदधीमां उत्कृष्टा सातसें योजनना शरीरवाला . तथा स्वयंजुरमणमां हजार योजनना शरीरवाला . ए जोयण उत्से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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