________________
सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६
२७ त्रण संघयणना विकल्पें नांगा बहोंत्तेर उदयना जाणवा तथा व्याणु, बाणु, नेव्याशी अठ्याशी, एंशी, उंगणाएंशी, बहोत्तेर अने पंच्चोत्तेर, ए आठ सत्तास्थानक होय. तिहां पहेलां चार सत्तास्थानक तो उपशमश्रेणीनी अपेक्षायें होय तथा पकश्रेणी पण ज्यांसुधी नामकर्मनी तेर प्रकृति दय न थाय, त्यां लगे जाणवां अने तेर प्रकृतिना दय पी 0-30-७६-७५- ए चार सत्तास्थानक होय. अहीं बंधोदयनो ज्नेद नथी ते माटें संवेध नथी देखाड्यो. ___ उपशांतमोहें बंधने अनावें एकज त्रीश प्रकृतिनुं उदयस्थानक . तिहां नांगा बहोत्तेर होय अने ज्याणु, बाणु, नेव्याशी अने अठ्याशी, ए चार सत्ता होय.
तथा दीपमोहें एकज त्रीशनुं जदयस्थानक . तिहां जांगा चोवीश, तिहां पण तीर्थकर नाम सहितने सर्व संस्थानादिक प्रशस्तज होय, ते माटें. तिहां ज०-७६- ए वे सत्ता तीर्थंकरने तथा ए–७५, ए बे सत्ता, अतीर्थकरने, एवं चार सत्ता होय. __सयोगी केवलीने वीश, एकवीश, बबीश, सत्तावीश, अहावीश, उंगणत्रीश, त्रीश अने एकत्रीश, ए पाठ उदयस्थानकना नांगा बसें पूर्व सामान्यादेशे विचास्या , तिहांधी जाणवा. अहीं सत्तास्थानक चार क्षीणमोहनी पेरेंज लेवां तथा संवेध चौद जीवस्थानक विचारें संझी पर्याप्ता छारें कह्यो , तिहांथी लेवो. __ अयोगी गुणगणे नव अने आउ, ए बे उदय होय, तेना नांगाबे अने Go-su७६-७५-ए--ए ब सत्ता होय. तिहां तीर्थकरने नवने उदय ७०-७६-ए-ए त्रण सत्ता होय तथा सामान्य केवलीने आग्ने उदये ए-७५--ए त्रण सत्ता होय. एम चौद गुणगणे श्राप कर्मनो बंध, उदय, सत्ता संवेध देखाड्यो. ॥ श्रथ मिथ्यात्वस्य त्रयोविंशत्यादिक बंधस्थानषट्के क्रमेण नंगप्ररूपिकां नायगाथामाह ॥ हवे मिथ्यात्वगुणगणानां जे त्रेवीशादिक उबंधस्थानक बे, तेने विषे अनुक्रमें केटला बंधना नांगा उपजे, ते प्ररूपवाने नाष्यगाथा कहे .॥
चन पणवीसा सोलस, नव चत्तालासयाय बाणनइ ॥
बत्ती सुत्तर गया, खसया मिबस्स बंध विही ॥६०॥ अर्थ-त्रेवीशने बंधस्थानकें चल के चार लांगा, पच्चीशने बंधे पणवीसा के पच्चीश नांगा, बबीशने बंधे सोलस के शोल नांगा, अहावीशने बंधे नव के नव जांगा, उगणत्रीशने बंधे चत्तालासयायबाण के बाणुसें ने चालीश नांगा, त्रीशने बंधे बत्तीसुत्तरगयालसया के तालीशसें ने बत्रीश जांगा उपजे, ए मिस्सबंधविही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org