SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 851
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ अहावीशने बंधे बेहु उदय प्रत्येकें अठ्याशीनी सत्ता होय; अने उंगणत्रीशने बंधे बेहु उदय प्रत्येकें नेव्याशीनी सत्ता होय; तथा त्रीशने बंधे बेहु उदयें प्रत्येकें बाणुनी सत्ता होय; तथा एकत्रीशना बंधे बेहु उदये प्रत्येकें त्र्याणुनी सत्ता होय. अंहींयां जे तीर्थकर तथा श्राहारक निश्चे बांधे, तेने एकेकी सत्ता होय. एवं श्राप सत्ता थाय. ____ हवे अपूर्वकरणे बंधोदय सत्ता संवेध कहे . अपूर्वकरणे अठावीश, उंगणत्रीश, त्रीश, एकत्रीश अने एक, ए पांच बंधस्थानक होय. तिहां प्रथमनां चार, अप्रमत्तनी पेरें लेवां, तथा एक यशःकीर्तिनो बंध, ते सातमे नागें देवगति प्रायोग्य बंधना विजेदें होय, तिहां नांगो प्रत्येकें एकेक होय. सर्व थर बंधनांगा पांच होय. तिहां प्रत्येक बंधस्थानकें एकत्रीशनुंज उदयस्थानक होय. तिहां प्रथम संघयणने उ संस्थानना विकल्पं न नांगा, ते शुनाशुन खगतियें बार अने सुखर मुखरें चोवीश नांगा थाय. अने कोइएक श्राचार्य, पहेला त्रण संघयणे उपशमश्रेणीनो आरंज माने बे. तेना मतें बहोत्तेर उदय नांगा होय. शरवाले पांच उदयना (३६० ) नांगा थाय तथा तिहां प्रथम चार बंधस्थानके त्रीशने उदयें अनुक्रमे अध्याशी, नेव्याशी, बाणु अनेत्र्याएं, ए एकेक सत्तास्थानक होय, अने एकने बंधे त्रीशने उदयें ए चारे सत्ता होय. शरवाले आठ सत्तास्थानक होय. ॥ ५ ॥ एगेग मह इगेग, महब उनमब केवल जिणाणं ॥ एगं चन एगं चन, अह चन उ बक्कमुदयंसा ॥ ५ ॥ अर्थ-नवमे गुणगणे एगेगम के एक बंधस्थानक, एक उदयस्थानक अने आठ सत्तास्थानक होय. दशमे गुणगणे गेगमह के एक बंधस्थानक, एक उदयस्थानक श्रने पाठ सत्तास्थानक होय. तथा बलम के उद्मस्थ यतिने उपशांतमोह, वीणमोह, श्रने केवल जिणाणं के केवली जिन ते सयोगी केवली तथा अयोगी केवली, ए चार गुणगणावालाने नामकर्मनो बंध न होय. तिहां उपशांतमोहने एगचउ के एक उदयस्थानक अने चार सत्तास्थानक होय, तथा क्षीणमोहने एगंचल के एक उदयस्थानक, अने चार सत्तास्थानक होय. सयोगी केवलीने बचन के श्राप उदयस्थानक श्रने चार सत्तास्थानक होय अने अयोगी केवलीने सुबक के बे उदयस्थानक अने सत्तास्थानक होय, ए रीतें मुदयंसा के उदय अने अंश एटले सत्ता तेनां स्थानक चार गुणगणे जाणवां. हवे अनिवृत्तिबादर तथा सूक्ष्मसंपरायें बंधादिक कहे . ए बेमुणगणे एक यशःकी. तिनो बंध अने त्रीशनो उदय होयं. तिहां दपकने नांगा चोवीश अने औपशमिकने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy