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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ उन्ए ॥ अथैतेषां जीवस्थानानि गुणस्थानानि वाश्रित्य, खामी दर्श्यते ॥ हवे अनुक्रमें ए आठ कर्मनी प्रकृतिनां स्थानक अने तेना जांगा चौद जीवस्थानक अने चौद गुणस्थानक श्राश्रयीने स्वामी प्रत्ये निर्णय करीने विशेषादेशे देखाडे बे. तिविगप्प पग गणे, हिं जीव गुणसन्निएसु गणेसु॥ नंगा पउँजियवा, जब जहा संनवो नव ॥ ३५॥ अर्थ-बंध, उदय श्रने सत्ता, ए तिविगप्प के त्रण विकल्प, तेना पगश्गणेहिं के आठ कर्मनी प्रकृतिनां स्थानक एक, बे, इत्यादिक तेने संवेधे जे नांगा उपजे, ते नांगा जीव के चौद जीव स्थानकने विषे अने गुणसन्निएसुगणेसु के चौद गुणस्थानक विषे पूर्वे जे कह्या, ते रीतें तेना अनुसारें नंगापजियवा के जांगा प्रयुंजवा. जबजहासंनवोनवर के जिहां जे नांगो संनवे, तिहां ते नांगो लगामवो ॥ ३५ ॥ ॥ अथ प्रथमजीवस्थानान्यधिकृत्याह ॥ हवे प्रथम चौद जीवस्थानक थाश्रयीने ज्ञानावरणीय तथा अंतरायकर्मना नांगा कहे . तेरससु जीव संखे, वएसु नाणंतराय तिविगप्पो॥ श्कमि ति उ विगप्पो, करणं पश्श्ब अविगप्पो ॥३६॥ अर्थ-तेरससुजीव के एक संझी पर्याप्तो टालीने पहेलां तेर जीवस्थानकने विषे संखेवएसु के संकेचे एटले थोडामांहे घणा जीव नाम कहीये. ते जणी संदेप जीवनेद पाठ कह्यो. तिहां नाणंतराय के एक शानावरणीय अने बीजें अंतराय, ए बे कर्मना बंध, उदय अने सत्ता, ए तिविगप्पो के त्रण विकल्पनो एक नांगो होय. एटले पांचनो बंध, पांचनो उदय श्रने पांचनी सत्ता होय. एना बंध, उदयश्रने सत्ता ध्रुव , ते जणी सर्वने होय. तथा कमि के एक संकी पंचेंजिय पर्याप्ता जीवनेदने विषे तिऽविगप्पो केण्त्रण विकल्प तथा बे विकल्पनो एकेक नांगो होय. एटले पांचनो बंध, पाँचनो उदय अने पांचनी सत्ता, एत्रणनो विकल्प, दशमा गुणगणा लगें होय, अने तेवार पदी ज्ञानावरणीय तथा अंतरायनोबंध नथी माटें पांचनो उदय अने पांचनी सत्ता, एबेनो विकल्प अगीधारमा अने बारमा गुणगणा लगें होय तथा करणंपवय. विगप्पो के करण एटले अव्यमननी अपेदायें संज्ञी जे सयोगी केवली तथा श्रयोगी नवस्थ केवली, तेने विषे ज्ञानावरणीय अने अंतरायनो बंध, उदय अने सत्तानो एक पण विकल्प नथी माटें अविकल्प बे. अहींयां अव्यमननी अपेक्षायें केवलीने संझी कह्यो. चूर्णिकारें असंझी कह्यो . "मणकरणं केवलिणो, विश्रवि तेणसनिए रोवुच्चंति ॥ मणोविनाणपडुच्च, तेणसन्निणोनहवंति” ॥ इति ॥ ३६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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