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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ : तथा केवलीने समुद्घात करतां औदारिक मिश्रयोगें वर्त्ततां औदारिकट्रिक, वजषजनाराचसंघयण, ब संस्थानमांदेडं एक संस्थान, उपघात अने प्रत्येक, ए ब प्रकृति पूर्वोक्त वीशमांहे नेले थके बबीशनो उदय होय. तिहां बीजे, ब श्रने सातमे, ए त्रण समय पर्यंत उंगणाएंशी अने पंच्चोत्तेर, ए बे सत्तास्थानक होय. तथा तीर्थकरने तेज स्थानकें तीर्थकरनाम सहित सत्तावीशनो उदय होय. तिहां एंशी. अने बहोत्तेर, ए बे सत्तास्थानक होय. • तथा ते बबीशमध्ये पराघात, उश्वास, शुज तथा अशुजखगतिमांदेली एक अने बे खरमांहेली एक, ए चार नेलतां त्रीशनो उदय, औदारिक योगें वर्तता केवलीने अथवा अगीश्रारमे गुणगणे पण होय. तिहांत्र्याणु, बाणु, नेव्याशी, अग्याशी, एंशी, ओगणाएंशी, बहोंत्तेर, अने पंचोत्तेर, ए श्राप सत्तास्थानक, ते मांहेला पहेला चार, उपशमश्रेणीनी अपेक्षायें श्रने हेला चार दीण कषायने तथा सयोगी केवलीने थने तीर्थकरने होय. तिहां श्राहारकचतुष्कनी सत्ता सहित तीर्थकरने एंशी अने अतीर्थकरने ओगणाएंशी श्राहारक वर्जीने तीर्थकरने बहोत्तेर, अतीर्थकरने पंच्चोत्तेर, ए बे बे सत्ता स्थानक होय. तथा एकत्रीशने उदयें एंशी अने उहोंत्तेर, ए बे सत्तास्थानक तीर्थंकर केवलीनेज जाणवां, जे जणी सामान्यकेवलीने तो एकत्रीशनो उदय नज होय. ते एकत्रीश मध्ये थी तीर्थकरने वचनयोग रुंधे त्रीशनो उदय होय, तिहां एंशी अने बहोत्तेर, ए बे सत्तास्थानक होय, तथा सामान्यकेवलीने औदारिक योगें वर्ततां त्रीशने उदयें श्रोगणाएंशी ने पंच्चोत्तेर, ए बे सत्तास्थानक होय. • ते त्रीशमध्ये थी वचनयोग रुंधे सामान्यकेवलीने ओगणत्रीशनो उदय होय. तिहां ओगणाएंशी अने पंचोत्तेर, ए वे सत्तास्थानक होय, तथा तीर्थकरने वचनयोग रुंधे त्रीश, तेमांथी श्वासोश्वास रुंधे ओगणत्रीशनो उदय होय. तिहां एंशी ने बहोत्तेर, ए बे सत्तास्थानक होय. एवं योगणत्रीशने उदयें चार सत्तास्थानक होय. ' तथा सामान्यकेवलीने वचनयोग रुंधे उगणत्रीशनो उदय हतो ते मध्ये थी श्वासो. श्वास रुंधे अहावीशना जदये जंगणाएंशी अने पंच्चोत्तेर, ए बे सत्तास्थानक होय. तथा नवना उदयें तीर्थकरने अयोगी गुणगणे एंशी अने बहोत्तेर तथा लेखे समयें नव, ए त्रण सत्तास्थानक होय. तथा सामान्यकेवलीने आपना उदयें अयोगीना हिचरम समय लगें जंगणाएंशी अने पंच्चोत्तर अने बेबे समयें श्राग्नु, एवं त्रण सत्तास्थानक होय. एम संवेधे नांगा त्रीश होय. ए रीतें ए नामकर्मनो बंधोदय सत्ता संवेध सामान्यदेशे कह्यो ॥ इत्यर्थः ॥ ३४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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