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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६
॥ छाथ दर्शनावरणजीवस्थानेष्वाह || हवे दर्शनावरणीयना बंधोदय सत्तास्थानकना जांगा चौद जिवस्थानकने विषे विचारे बे. ॥
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तेरे नव च पणगं, नव सत्ते गम्मि जंगमिक्कारा ॥
वेणि प्रान गोए, विजय मोदं परं वुद्धं ॥ ३७ ॥
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अर्थ - तेरेनवच के० संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ता विना तेर जीवस्थानकने विषे दर्शनावरण कर्मनो नवनो बंध, चारनो उदय ने नवसत्ते के० नवनी सत्ता, तथा नवनो बंध, पणगं के० पांचनो उदय ने नवनी सत्ता, ए बे जांगा होय. श्रने एगम्मि जंग मिक्कारा के एक संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ता जीवस्थानकने विषे पूर्वे जे दर्शनावरणीयना संवेधें सामान्यें गीर जांगा कहा, ते श्री आर अहींथां लेवा. दवे वेणीगो के वेदनीय, श्रयु छाने गोत्र, ए त्रण कर्मने विषे बंध, उदय ने सत्तायें प्रकृतिनां स्थानक ने जांगा ते श्रागमोक्त प्रकारें जीवस्थानकने विषे कही ने विजयमोदं परं के० पठी मोहनीय कर्मना जांगा वहेंचीने कदेशे ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३७ ॥
॥ अथ वेदनीयगोत्रयोर्जंग ज्ञानार्थ मियमंतर्नाष्यगाथा. हवे वेदनीय छाने गोत्रकर्मना जांगा चौद जीवनेदें वर्हेचवाने जाष्यनी गाथा कहे . ॥ पत्तग सन्निरे, ठ चक्कं च वेयणिय जंगा ॥ सत्तय तिगं च गोए, पत्ते जीवठाणेसु ॥ ३८ ॥
अर्थ - पात्तसन्नि के० संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ताने विषे वेदनीयकर्मना श्रह के० श्राव जांग जे पूर्वे सामान्यपणे कला, ते वहीं विशेषपणे लेवा, तथा इवरे के० ए संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ता विना बीजा तेर जीवस्थानकें १ अशातानो बंध, अशातानो उदय ने बेहुनी सत्ता, २ घशातानो बंध, शातानो उदय ने बेहुनी सत्ता, ३ शातानो बंध, अशातानो उदय ने बेहुनी सत्ता, ४ शातानो बंध, शातानो उदय
ने बेहुनी सत्ता, ए चक्कंचवेय पियगंगा के० ए चार जांगा वेदनीयना तेर जीवनेदें होय. अहींयां सयोगी केवलीने प्रयोगी केवलीनी पेरें द्रव्यमनना संबंध जणी संज्ञी लेखवतां विरोध नहीं. अन्यथा श्रागला आठ मांहेला चार जांगा तो केवलीनेज होय, ते कारण माटें पर्याप्त संज्ञीने विषे वेदनीयना आठ नांगा का aai विरोध नथी.
तथा सत्तयतिगंचगोए के० गोत्रकर्मना जे पूर्वे बंध, उदय ने सत्तानो संवेध करतां सामान्यादेशें सात जांगा कह्या, तेज यहीं थां पर्याप्ता सन्निपंचेंद्रियने सात जांगा लेवा.
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