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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६
अर्थ- - तथा उपत्ती सिक्कारससयाणि के० उगणत्रीशसें अने अगी धारसें, ए बे उपर अनुक्रमें सतर के सत्तर ने पंचसहिहिं के० पांशठ, श्रहिय के अधिक करीयें, तेवारें त्रीशने उदयें बे हजार, नवसें ने सत्तर जांगा था, छाने एकत्रीशने उदयें गीयर ने पांशठ जांगा थाय, ते कही देखाडे बे. एटले त्रीशने उदयें विकलें प्रियना ढार, तिर्यंचपंचेंद्रियना सत्तरसें ने श्रद्वावीश, मनुष्यना श्रीधरसें बावन, वैक्रिय तिर्यंचना याठ, वैक्रियमनुष्यनो एक, आहारकनो एक, केवलीनो एक
देवताना श्राव एवं सर्व मली (२०१५) जांगा थाय. तथा एकत्रीशने उदयें विकलेंडियन बार, पंचेंद्रिय तिर्यंचना श्रगी धारसें ने बावन्न अने केवलीनो एक, एवं (१९६५) नांगा था. तथा इक्किक्कगंच के० एकेक जांगो नवना अने श्रावना उदयने विषे केवलीने होय एटले नवने उदयें एक जांगो ने श्रावने उदयें एक जांगो होय. वीसा हुदयंते के० ए वीशना उदयस्थानकथी मांगीने श्रावना उदयस्थानक पर्यंत बार उदयस्थानक तेने विषे उदय विही के० उदयना प्रकार जाणवा. सर्व उदयना जांगानी संख्या ( १ ) जाणवी ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३० ॥
॥ अथ सत्तास्थानान्याह ॥ दवे नामकर्मनां सत्तानां स्थानक कहे . ॥ ति नउई गुण नजई, अडसी बलसी सीइ गुणसीई ॥ अन्य उप्पन्नत्तरि, नव अन्य नाम संताणि ॥ ३१ ॥
अर्थ-तिडुनउई के एक त्र्याणु प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, बीजुं बाणु प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, गुणनउई के० त्रीजुं नेव्याशी प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, अमसी के० चोथुं अय्याशी प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, बलसी के० पांचमुं बयाशी प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, सीके बहुं एंशी प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, गुणसीई के० सातमुं श्रोगरयाएंशी प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, अयप्पन्नत्तरि के० श्रमुं होत्तेर प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, नवमं बहोंत्तेर प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, दशमुं पंच्चोत्तेर प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, नव के० गारमुं नव प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, अने श्रय के० बारमुं आठ प्रकृतिनुं सत्तास्थानक, एवं बार, नामसंतापि के० नामकर्मनां सत्तास्थानक होय ॥ इत्यक्षरार्थः ३१
दवे ए बार सत्तास्थानकनुं विवरण लखीयें ढैयें. तिहां नामकर्मनी सर्व प्रकृतिना समुदायनी सत्ता होय, तेवारें त्र्याणुनुं सत्तास्थानक, तेमांहे जिननामनी सत्ता जेवारें न होय, तो बानुं सत्तास्थानक तथा त्र्याणुमांहेथी १ आहारकशरीर, २ आहारकअंगोपांग, ३ श्राहारकबंधन, ४ आहारकसंघातन, ए चारनी सत्ता न होय, तेवारें नेव्याशीनुं सत्तास्थानक, तेमध्यें वली जिननामनी सत्ता न होय, तेवारें अव्याशीनं
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