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________________ सप्ततिकानामा पष्ठ कमग्रंथ. ६ एक होय. एम पांचे उदयस्थानकें थइने नारकीने जांगा पांच उपजे. एम ए चारे गतिना उदयस्थानकना शरवाले जांगा ( १७९१ ) थाय ॥ इति उदय जांगा संपूर्ण ॥ २८ ॥ ॥ दवे कया उदयस्थानकें केटला जांगा शरवाले होय, ते कहे बे. ॥ इक्क वयालि कारस, तित्तीसा बस्सयाणि तित्तीसा ॥ बारस सत्तरससया, दिगाणि बि पंच सीईदिं ॥ २५ ॥ 966 अर्थ-बी प्रकृतिने उदय स्थानके इक्क के० एक जांगो केवलीने होय. तथा एकवीशने उदयस्थानकें एकेंद्रियना पाँच, विकलेंडियना नव, पचेंद्रिय तिर्यंचना नव, मनुष्यना नव, केवलीनो एक, देवताना याठ, तथा नारकीनो एक, एवं बयाल के० तालीश जांगा होय. तथा चोवीशने उदयस्थानकें इक्कारस के० अगीआर जांगा एकेंद्रियना होय. तथा पच्चीशने उदयें एकेंद्रियना सात, वैक्रियतिर्यंचना आठ, वैक्रियमनुष्यना आठ, आहारकनो एक, देवताना आठ, अने नारकीनो एक, एवं तित्तीसा के० तेन्रीश जांगा होय. तथा बवीशना उदयें एकेंद्रियना तेर, विकलें प्रियना नव, पंचेंद्रिय तिर्यंचना बसें ने नेव्याशी, अने सहेज मनुष्यना बसें ने नेव्याशी, एवं स्याणि के० बसें जांगा होय. तथा सत्तावीशने उदयें एकेंद्रियना छ, वैक्रियतिर्यंचना आठ, वैक्रियमनुष्यना आठ, आहारकनो एक, केवलीनो एक, देवताना ad, अने नारकीनो एक, एवं तित्तीसा के तेत्रीश जांगा होय. तेवार पढी बारससत्तरससया के० बारस एटले बारसें अने सत्तर एटले सत्तरसें ते बि के० बे पंचसी हिं के० पचाशीयें करी हिगाणि के० अधिकानि एटले अधिक जाणवा, एटले अनुक्रमें बारसें उपर बे अधिक छाने सत्तरसें उपर पंच्चाशी अधिक, एम अनुक्रमें वीशने उदयें बारसें ने वे तथा उगणत्रीशने उदयें सत्तरसें ने पंच्चाशी जांगा जावा, तेज कही देखाडे बे. तिहां अहावीशने उदयें विकलेंडियना ब, पंचेंद्रिय - तिर्यंचना पांच ने बहोंत्तेर, मनुष्यना पांच ने उहोंत्तेर, वैक्रिय तिर्यंचना शोल, वैमनुष्यना नव, आहारकना वे, देवताना शोल, अने नारकीनो एक, एवं बा रसें ने बे जांगा था. तथा उगणत्रीशने उदयें विकलेंद्रियना बार, पंचेंद्रिय तिर्यंचना अरने बावन, मनुष्यना पांचसें बहोंत्तेर, वैक्रियतिर्यंचना शोल, वैक्रियमनुtयना नव, श्राहारकना बे, केवलीनो एक, देवताना शोल ने नारकीनो एक, एवं सत्तरसें ने पंच्चाशी जांगा होय ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ २५ ॥ अणत्ती सिक्कारस, सयाणि दिय सतर पंच सहीहिं ॥ इक्विक गंच वीसा, दहुदयंतेसु उदय विदी ॥ ३० ॥ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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