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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ १ पण जंगणत्रीशनो उदय थाय. तिहां पण नांगा बे होय. एम गणत्रीशने उदयें सर्व मली चार लांगा थाय. ते उश्वास सहित उगणत्रीश प्रकृतिमाहे सुखर, फुःस्वर मांहेला एकनो उदय नेलतां त्रीशनो उदय थाय. श्रहीं यशःकीर्ति तथा अयशःकीर्ति साथै नांगा बे, ते बेनांगा सुखरना अने बे पुखरना, एवं चार नांगा थाय. अथवा श्वासोश्वास पर्याप्तियें करी पर्याप्ताने जिहां लगे नाषा पर्याप्ति पूर्ण करी न होय, तिहां लगें बेह वरना उदय विना उद्योतनो उदय नेलतां पण त्रीशन उदयस्थानक होय. अहीं यशःकीर्ति अने अयशःकीर्तिना विकल्प बे नांगा थाय, एम सर्व मली त्रीशने उदयें व नांगा थाय. तथा स्वर सहित त्रीशना उदय मांहे उद्योतनो उदय नेलतां एकत्रीशनो उदय भाषापर्याप्तियें करी पर्याप्ता जीवने होय. अहींयां यश, अयशें तथा स्वर भने फुःखरना विकल्पें चार नांगा थाय, एम सर्व मलीने एकवीशने उदयेंत्रण, बबीशने उदय त्रण, अहावीशने उदयें बे, गणत्रीशने उदयें चार, त्रीशने उदयें ब, अने एकत्रीशने उदयें चार, एम उदयस्थानकें थश्ने बावीश नांगा बेंजियने तथा तेज बावीश नांगा तेंजियने तेमज चौरिंजियने पण तेटलाज जदयस्थानकें थ बावीश नांगा होय. एम विकलेंजिय मध्ये सर्व मलीने नांगा नाश होय. हवे सामान्य पंचेंजिय तिर्यंच मध्ये उ उदयस्थानक होय, ते कहे बे. एकवीश, बबीश, अहावीश, उगणत्रीश, त्रीश अने एकत्रीश, ए ब उदयस्थानक होय. तिहां २ तिर्यंचछिक, ३ पंचेंजियजाति, ४ त्रस, ५ बादर, ६पर्याप्त अने अपर्याप्तमांदेली एक, ७ सौनाग्य थने दो ग्यमांहेली एक, श्रादेय अने अनादेयमांहेली एक, ए यशःकीर्ति श्रने अयशःकीर्तिमाहेली एक,ए नव तथा बार ध्रुवोदयी, एवं एकवीश प्रकृतिनुं उदयस्थानक, पंचेंजिय तिर्यंचने पूर्वनवनुं शरीर बांड्या पली मार्ग विचालें विग्रहगतियें होय. अहींयां पर्याप्त नामने उदयें वर्त्तताने सुजग उर्जगने विकल्पें नांगा बे, ते वली श्रादेय अनादेयने विकल्पं नांगा चार, ते चार यश कीर्ति साथें अने चार अयशःकीर्ति साथ, एवं श्राप नांगा थाय; अने अपर्याप्त नामने उदयें वर्त्तताने सौजाग्य, श्रादेय श्रने येशःकीर्तिनो उदय न होय. तेमाटें विकल्पने अजावें बीजो नांगो पण न उपजे, मात्रै तिहां एकज नांगो जाणवो. एवं नव नांगा थया. यहीं कोइएक आचार्य कहेडे के, सुजग अने आदेयनो साथेंज समकालें उदय होय, तेम उर्जग श्रने अनादेयनो पण उदय साथेंज होय, तेथी ए बे साथें बे जांगा ते यशःकीर्ति अने अयशःकीर्ति साथें गुणतां चार नांगा पर्याप्त साथें थाय, अने एक अपर्याप्तनो नांगो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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